जिंदगी का गीत यूँ ही
सोचते
ही आज बीता
कल
कभी आता कहाँ,
जिंदगी
का गीत यूँ ही
छिटक
ही जाता रहा !
डर
छुपाये जी रहा जग
धुधं,
कोहरा या धुआं सा,
मांगता
रब से दुआएं
कंप
रहा मन पात सा !
नींद
में जो स्वप्न देखे
जागते
ही खो गये वे,
जग
उठे भीतर उजाला
स्वप्नवत
होगा जगत ये !
मुस्कुराती जिन्दगी तब
बाँह फैलाये मिलेगी,
हर कदम पर खिलखिलाती
गंग धारा सी बहेगी !