शुभ हो नया वर्ष
चलो एक बार फिर
करें स्वागत नव वर्ष का !
यूँ तो सृष्टि हर क्षण नयी है
उपजती है, मिटती है
उमडती है, गिरती है
बनती है पल-पल अपनी गरिमा में
कुछ और ही...
नहीं था हिमालय का उत्तंग शिखर लाखों वर्ष पूर्व
आज जहाँ है मरुथल, बहती थी जलधार वहाँ
वहाँ आज कंटक हैं...जहाँ फूलों की घाटियाँ थीं कभी
रूप और आकार बदलते हैं
बदलती हैं चेहरे की रेखाएं भी
नेताओं के भविष्य भी, देशों की सीमाएं भी....
एक वर्ष में भी बदल जाता है बहुत कुछ
चलो एक बार फिर
कुछ वायदें करें खुद से
अपनी सम्भावनाओं को तलाशें
बीज जो मचल रहा है भीतर
फूल बनने को
उसे उचित खाद और जल से सींचें
सुनें दिल की ज्यादा
जब दिमाग कहे शॉर्टकट अपनाने को
दे दिलाकर कुछ अपना काम निकलवाने को....
चलो एक बार फिर
करें यकीन अच्छाई पर
कुछ पेड़ लगाएं
धरती को हरा-भरा छोड़ जाने के लिये
और मत व्यक्त करें
जब चुनाव आएँ...
चलो नववर्ष का करें स्वागत...