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बुधवार, नवंबर 24

नया दिन

नया दिन 


मिलता है कोरे काग़ज़ सा 

हर नया दिन 

जिस पर इबारत लिखनी है 

ज्यों किसी ख़ाली कैनवास पर 

रंगों से अनदेखी आकृति भरनी है 

धुल-पुंछ गयीं रात की बरसात में 

मन की गालियाँ सारी 

नए ख़्यालों की जिनसे 

बारात गुजरनी है 

हरेक दिन 

एक अवसर बनकर मिला है 

कई बार पहले भी 

कमल बनकर खिला है 

हो जाता है अस्त साथ दिनकर के 

पुनः उसके उजास में 

 कली उर की खिलनी है 

जीवन एक अनपढ़े उपन्यास की तरह 

खुलता चला जाता है 

कौन जाने किस नए पात्र से 

कब मुलाक़ात करनी है 

हर दिन कोई नया ख़्वाब बुनना है 

हर दिन हक़ीक़त भी 

अपनी राह से उतरनी है 

अनंत सम्भावनाओं से भरा है जीवन 

कौन जाने कब किसकी 

क़िस्मत पलटनी है !




शनिवार, मार्च 11

जीवन स्वप्नों सा बहता है



जीवन स्वप्नों सा बहता है 


आज नया  दिन 
अग्नि समेटे निज दामन में 
उगा गगन में अरुणिम सूरज 
भर उर में सुर की कोमलता 
नये राग छेड़े कोकिल ने 
भीगी सी कुछ शीतलता भर 
नई सुवास हवा ले आयी
मंद स्वरों में गाती वसुधा 
 पल भर में हर दिशा गुँजाई 
उड़ी अनिल सँग शुष्क पत्तियां 
कहीं झरे पुहुपों के दल भी 
तिरा गगन में राजहंस इक 
बगुलों से बादल के झुरमुट 
नीला आसमान सब तकता 
माँ जैसे निज संतानों को 
जीवन स्वप्नों सा बहता है 
भरे सुकोमल अरमानों को...

शनिवार, अगस्त 17

जन्मदिन पर ढेरों शुभकामनायें

उन सब के लिए जिनका जन्मदिन आज है 

जन्मदिन पर ढेरों शुभकामनायें


जीवन के इस सुंदर पथ पर
बन कर आता मील का पत्थर,
जन्मदिवस यह स्मरण कराने
थम कर सोचें तो यह पल भर !

नया नया सा दिन लगता है
नया हौसला भरतीं श्वासें,
नव कलिका मन की शाखों पर
दिल ने छेड़ी हैं नव तानें !

नये क्षितिज थमा जाता है
नई चुनौती, नई मंजिलें,
जन्मदिवस भर जाता भीतर
नये अनुभवों के सिलसिले !

मन में भरकर सहज उमंग,
जीतें जीवन की हर जंग,
चढ़े प्रीत का गहरा रंग,
मन पाले अब सत का संग!

कोमल दिल, दृढ भी अंतर
सहज प्रेम लुटायें सब पर,
जीवन को भरपूर जी सकें
दिल में जोश बहे निरंतर !

एक कदम और जाना है
मंजिल को पास बुलाना है,
जन्मदिन पर यही कामना
लब पर यही तराना है !


गुरुवार, जनवरी 3

अग्नि ही उनका सखा है


अग्नि ही उनका सखा है

रह-रह कर कंपकंपाते
शीत में तन सिकुड़ जाते,
पात भी कुछ पीत होकर
सर्दियों में थरथराते !

दूब जो पहले हरी थी
सूखती सी रंगी भूरी,
दिन हुआ छोटा सा देखो
शाम से ही रात उतरी !

ओढ़ कंबल ताप सेंकें
बाल, बूढ़े उस सड़क पर
अग्नि ही उनका सखा है
नहीं हीटर और गीजर !

सुबह सूरज भी संवरता
पहन कर पाले का स्वेटर,
हवा तुम विश्राम ले लो
भाव यह होता मुखर !

सर्दियों की भोर अनुपम
दोपहर बैठक सजाती,
स्वेटरों के रंग खिलते
मूंगफली की दाल गलती !

थी गुलाबी सर्दियाँ जो
आज यौवन पा गयी हैं,
घन कोहरे के कारण 
फिर उड़ानें रद हुई हैं !  

शुक्रवार, नवंबर 9

सब घटता है सहज यहाँ


सब घटता है सहज यहाँ


रात ढली, दिन उगा
बोलो किसको श्रम हुआ,
हवा बही सुरभि लिए
बोलो किसने दाम दिए !

शिशु जन्मा, पांव चला
किसने उसको खड़ा किया,
कली खिली, पुष्प बना
किसने रंग उड़ेल दिया !

नदी बही, सिंधु मिला
किसने उसका मार्ग गढ़ा,
सलिल उठा, मेघ बना
किसने उसको गगन दिया !

सब घटता है सहज यहाँ
मात्र यहाँ होना होता है,
होने में भी श्रम न कोई
बस खुद को मिटना होता है !

मिटना भी तो सहज घटे
जीवन का रहस्य मृत्यु है,
उससे ही सौंदर्य मिलता
वही मात्र परम सत्य है !




शनिवार, सितंबर 22

क्षण क्षण बजती है रुनझुन




क्षण क्षण बजती है रुनझुन

दीन बना लेते हम स्वयं को
ऊंचा उठने की खातिर,
जो जैसा है श्रेष्ठ वही है
हो वैसे ही जग जाहिर !

फूल एक नन्हा सा हँसता
अपनी गरिमा में खिलकर,
होंगे सुंदर फूल और भी
पर न उसे सताते मिलकर !

मानव को यह रोग लगा है
खुद तुलना करता रहता,
दौड लगाता पल-पल जग में
 उर संशय भरता रहता !

जिसको देखो दौड़ रहा है
जाने क्या पाने की धुन,
पल भर का विश्राम न घटता
क्षण क्षण बजती है रुनझुन  !

ठहर गया जो अपने भीतर
खो जाते हैं भेद जहाँ,
थम जाती है जग की चक्की
जीवन लगता खेल वहाँ ! 

सोमवार, अक्टूबर 11

कहानी एक दिन की

कहानी एक दिन की

दिनकर का हाथ बढ़ा
उजियारा दिवस चढ़ा
अंतर में हुलस उठी
दिल पर ज्यों फूल कढ़ा !

अपराह्न की बेला
किरणों का शुभ मेला
पढ़कर घर लौट रहे
बच्चों का है रेला !

सुरमई यह शाम है
तुम्हरे ही नाम है
अधरों पर गीत सजा
दूजा क्या काम है !

बिखरी है चाँदनी
गूंजे है रागिनी
पलकों में बीत रही
अद्भुत यह यामिनी !


अनिता निहालानी
११ अक्तूबर २०१०