सोमवार, अप्रैल 29

मनुज प्रकृति से दूर गया है

मनुज प्रकृति से दूर गया है 


वृक्षों के आवाहन पर ही 

मेघा आकर पानी देते, 

कंकरीट के जंगल आख़िर 

कैसे उन्हें बुलावा दे दें ! 


सूना सा नभ तपती वसुधा 

शुष्क हुई हैं झीलें सारी, 

 कहाँ उड़ गये प्यासे पंछी

 तोड़ रही है दम हरियाली !


खलिहानों में प्लॉट कट रहे

माँ सी धरती बिकती जाती, 

अन्नपूर्णा जीवन दायिनी 

उसकी क़ीमत आज लगा दी !


बेच-बेच कर भरी तिजोरी 

जल आँखों का सूख गया है,

पत्थर जैसा दिल कर डाला 

मनुज प्रकृति से दूर गया है !


जगे पुकार भूमि अंतर से 

प्रलय मचा देगा सूरज यह, 

अंश उसी का है यह धरती 

लाखों वर्ष लगे बनने में !


जहां उगा करती थी फसलें 

कितने जीव जहां बसते थे, 

सीमेंट बिछा, लौह भर दिया 

मानो कब्र खोद दी सबकी ! 


हरे-भरे वृक्षों को काटा 

डामर की सड़कें बिछवायीं, 

मानव की लिप्सा सुरसा सी 

पर चतुराई काम न आयी !


बेबस  किया आज कुदरत ने

 तपती सड़कों पर चलने को, 

लू के दंश झेलता मानव 

मान लिया मृत जीवित भू को !


अब भी थमे विनाश का खेल 

जो शेष है उसे सम्भालें, 

पेड़ उगायें उर्वर भू पर 

पूर्वजों की राह अपनायें !


एक शाख़ लेने से पहले 

पूछा करते थे पेड़ों से, 

अब निर्जीव समझ कर हम तो 

कटवा देते हैं आरी से !


क्रोध, घृणा, लालच के दानव 

समरसता को तोड़ रहे जब,

छल-छल, रिमझिम की प्यारी धुन 

सुनने को आतुर हैं जंगल! 



शुक्रवार, अप्रैल 26

पंछी इक दिन उड़ जाएगा

पंछी इक दिन उड़ जाएगा 


जरा, रोग की छाया डसती 

मृत्यु, मुक्ति की आस बँधाये, 

पंच इंद्रियाँ शिथिल हुई जब  

जीवन में रस, स्वाद न आये !


कुछ करने की चाह न जागे  

फिर भी आशा देह चलाती, 

जीवन की संध्या बेला में  

पीड़ा उर में रहे सताती !


धन का मोह, मोह पदार्थ का 

अंतिम क्षण तक  रहता जकड़े,

ख़ुद की महिमा समझ न पाया 

मानव मरते दम तक अपने !


 ज्वाला क्रोध जलाया करती 

पहन मुखौटा जग से मिलता, 

कभी-कभी ही सहज प्रेम से 

अंतर कमल जीव का खिलता !


या निर्मल प्रेम संग मन में

काँटा भीतर चुभता रहता, 

भय का एक आवरण मन को 

भ्रमित करे, सुख हरता रहता !


सौ-सौ कष्ट सहे जाता है 

किंतु मोह अतीव जीवन से, 

पंछी इक दिन उड़ जाएगा 

बंधा हुआ जीव तन-मन से ! 


मोह मिटेगा, शांति मिलेगी, 

तोड़ा जब बंधन माया का, 

झुकी कमर, बलहीन हुआ तन 

पुनर्जन्म होगा काया का !


ख़ुशी-ख़ुशी जग विदा करेगा 

पाथेय प्रेम संग बांध दे, 

पथिक चला जो नयी राह पर 

शुभता से उसका मन भर दे !



बुधवार, अप्रैल 24

नयन स्वयं को देखते न

नयन स्वयं को देखते न 


हम हमीं को ढूँढते हैं 

पूछते फिरते कहाँ हो ?

हम हमीं को ढूँढते हैं 

पूछता ‘मैं’ ‘तुम’ कहाँ हो ?


खेल कैसा है रचाया 

अश्रु हर क्योंकर बहाया, 

नयन स्वयं को देखते न 

रहे उनमें जग समाया !


अस्त होता कहाँ दिनकर 

डोलती है भू निरंतर, 

देह-मन को करे जगमग 

आत्मा सदा दीप बन कर !


प्रश्नवाचक जो बना है

पूछता जो प्रश्न सारे

भावना से दूर होगा 

दर्द जो अब भरे आहें !


जो नचाती, घेरती भी  

एक छाया ही मनस की, 

दूर ले जा निकट लाती 

लालसा जीवन-मरण की !


‘तू’ छिपा मुझी  के भीतर 

‘मैं’ मिले ‘तू’ झलक जाये 

एक पल में हो सवेरा 

भ्रम मिटाकर रात जाये !


सोमवार, अप्रैल 22

एकांत

एकांत  

उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक

धरा के इस छोर से उस छोर तक

कोई दस्तक सुनाई नहीं देती

जब तक सुनने की कला न आये 

वह कर्ण न मिलें  

 सुन लेते हैं जो मौन की भाषा 

 जहां छायी है 

अटूट निस्तब्धता और सन्नाटा

वहीं गूंजता है 

अम्बर के लाखों नक्षत्रों का मौन हास्य 

और चन्द्रमा का स्पंदन  

मिट जाती हैं दूरियाँ

हर अलगाव हर अकेलापन

जब मिलता है उसका संदेशा 

एक अनमोल उपहार  सा

और भरा जाता है एकांत 

मृदुल प्यार सा  !


सोमवार, अप्रैल 1

कुछ दिन गुजरात में - २

कुछ दिन गुजरात में - २


गिर वन्यजीव अभयारण्य 


आज सुबह हम केवड़िया से साढ़े आठ बजे रवाना हुए और शाम को सात बजे गिर पहुँच गये। संपूर्ण गुजरात में ही सड़कें बहुत अच्छी हैं, और इस मार्ग पर यातायात भी अधिक नहीं था। हमारा ड्राइवर मेहुल बहुत सुरक्षित गाड़ी चला रहा था। उसमें एक ही बात अखर रही थी, वह दिन भर पान मसाला खाता रहता और रास्ते में चलते हुए कई बार कार का दरवाज़ा खोलकर मुँह साफ़ करता। जब हम राजकोट मपहुँचे,  दो भव्य मंदिर देखने को मिले। पहला था अठाहरवीं शताब्दी के संत जलाराम का मंदिर, जिनकी कहानी चमत्कारों से भरी है। उन्हें किसी साधु ने राम की मूर्ति दी थी और कहा था हनुमान भी अपने आप पीछे आयेंगे।और ऐसा ही हुआ। मंदिर में उन स्वयंभू हनुमान की मूर्ति भी थी। दूसरा श्री खोडाल धाम मंदिर था, जो गुजरात के पटेल समुदाय ने बनवाया है। यह मंदिर भी सोमनाथ के मंदिर की तरह बना है, पर आकार में उससे छोटा है। उड़ीसा के कलाकारों ने इसकी बाहरी दीवारों पर मूर्तियों का निर्माण किया है तथा भीतर राजस्थान से मँगवायीं श्वेत संगमरमर की मूर्तियाँ हैं। जिन्हें देखने से लगता है वे अभी बोल पड़ेंगी। इस रिजार्ट में रात्रि भोजन के बाद आदिवासी सिंह नृत्य का आयोजन किया गया है। 

आज सुबह साढ़े सात बजे हम हिरण नदी के किनारे पक्षी दर्शन के लिए गये। अनेक सुंदर पक्षियों को उनके प्रकृति आवास में देखकर अति आनंद हुआ, हमने कई सुंदर तस्वीरें उतारीं। दोपहर को दो बजे जंगल सफारी के लिए जाना था। ड्राइवर लालू ने पैंतालीस किलोमीटर के निर्धारित इलाक़े में घुमाया। गाइड शैलेश भी साथ था, जिसने एशियाई बब्बर शेरों तथा जंगल के बारे में कई जानकारियाँ दीं। उसका परदादा नामधारी थे, जो पशु पालन का काम करते हैं। यहाँ सदियों पूर्व अफ़्रीका से आये लोग भी रहते हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान में चीतल, नीलगाय,सांभर, हिरण आदि बहुतायत में मिल जाते हैं। शेरों की संख्या बढ़ने में इनका भी योगदान है। हमें एक नर शेर दिखायी दिया, फिर शेरनी व उसके दो बच्चे भी। शाम को लौटे तो सूर्यास्त होने को था। शाम को रिजार्ट वालों की तरफ़ से कुछ खेल खिलाए गये। इसके बाद गिर के जंगलों पर आधारित एक डाक्यूमेंट्री फ़िल्म भी दिखायी गई। 


सोमनाथ 


आज का दिन भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। आज अयोध्या में श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम पूरी गरिमा के साथ संपन्न हो गया। मोदी जी ने बहुत अच्छा भाषण दिया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व राज्यपाल भी वहाँ उपस्थित थे। आज सुबह भी हम सफारी के लिए गये थे, एक शेर के दर्शन हुए। लगभग साढ़े ग्यारह बजे सासन गिर से निकले और एक घंटे में द्वारिका स्थित होटल सरोवर पोर्टिको पहुँच गये। रास्ते में मोबाइल पर प्राण प्रतिष्ठा का सीधा प्रसारण देखते रहे। दोपहर तीन बजे तक यह कार्यक्रम चलता रहा। संध्या पूर्व हम प्रभास क्षेत्र में स्थित सोमनाथ मंदिर में दर्शन के लिए गये। मोबाइल व घड़ी पहले ही जमा करवा ली जाती है। मंदिर बहुत भव्य है। मंदिर के कलश पर स्वर्ण की परत लगायी गई है, जो दस टन का है ।इसके बाद हम भालका तीर्थ के मंदिर के दर्शन के लिए भी गये। कृष्ण के देह त्याग की सुंदर मूर्ति वहाँ स्थापित है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर पर विश्राम कर रहे थे, तब जरा नामक एक शिकारी ने भूल से उन पर तीर चलाया था, जो उनके पैर के तलुवे में लगा था। इसी स्थान पर कृष्ण ने इहलोक की लीला समाप्त की थी। 


शाम को हम मंदिर के निकट समुद्र तट पर गये, जहाँ हज़ारों की संख्या में उत्साहित भीड़ एकत्र थी। सूर्यास्त के प्रकाश में सागर का जल सोने का सा चमक रहा था। सैकड़ों की संख्या में जल पक्षी उड़ रहे थे और नि:शंक लोगों के पास आकर बैठ रहे थे। हमने कुछ समय वहाँ बिताया फिर मंदिर में  आ गये। लेजर शो की टिकट लेकर कार्यक्रम की प्रतीक्षा करने लगे। धीरे-धीरे वहाँ लोग उपस्थित होने लगे और सारा प्रांगण भर गया। पहले आरती हुई, फिर कीर्तन करवाया गया।इसके बाद हमने सोमनाथ मंदिर के इतिहास को ध्वनि व प्रकाश के अद्भुत शो के माध्यम से मंदिर की दीवारों पर सजीव होते देखा।  कल हमें द्वारिका जाना है। 



परमात्मा कण-कण में है, तीर्थों में उसकी अनुभूति की जा सकती है। जैसे हवा हर जगह है पर पंखे के नीचे बैठकर उसका अनुभव तीव्रता से होता है। सोमनाथ का यह पावन तीर्थ हृदय को हृदय को पावन करने वाला है। युगों पूर्व इसका निर्माण राजा सोम ने करवाया था, जो क्षय रोग से पीड़ित हो गये थे। उन्होंने तप किया, शिव प्रकट हुए। हर युग में इस मंदिर की स्थापना पुन: पुन: होती रही। गजनी के बाद न जाने कितने आक्रांताओं ने इसे तोड़ा और इसकी अकूत सम्पति को साथ ले गये , पर भारत की अक्षुण्ण संस्कृति की यह शाश्वत सामर्थ्य और परंपरा है जिसने इसे बार-बार सृजित किया। इस स्थान की पवित्रता को कोई कैसे ले जा सकता था। शिव की ऊर्जा जो यहाँ स्थायी रूप से स्थापित है उसे नष्ट करने का कोई साधन उनके पास नहीं था। वह ऊर्जा ही समय-समय पर भक्तों के हृदयों में निर्माण का बल भरती रही और आज़ादी के बाद यह सुंदर तीर्थ जो आज हमारे सम्मुख है, प्रकट हुआ। सोम का अर्थ है चंद्रमा, जो मन का प्रतीक है। मन का जो नाथ है वह कल्याणकारी शिव ही प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में यहाँ स्थापित है, उसी का अंश आत्मज्योति के रूप में हमें अपने भीतर जलाना है। जब मन हर कुटिलता को छोड़कर सुडौल पत्थर की भाँति तराश लिया जाएगा तब वह शिवलिंग की भाँति शांति प्रदायक बनेगा। उसकी पूजा दूध, घी, दही, बेल पत्र, मधु, जल, पुष्प आदि से होती है, जो हमारी भावनाओं के प्रतीक हैं। तीनों गुणों से ऊपर उठकर जब हम अपने ह्रदय को आनंद, प्रेम और शांति के त्रिपुंड से सजाते हैं, तब सोमनाथ की कृपा का अनुभव होता है।