नीड़ बनाना चाहे चिड़िया
जाने बनी है किस माटी की
बड़ी हठीली, जिद की पक्की,
नन्हीं जान बड़ी फुर्तीली
लगती है थोड़ी सी झक्की !
सूखे पत्ते, घास के तिनके
सूखी लकड़ी, कपड़े लत्ते
चोंच में भर-भर लाती चिड़िया
नीड़ बनाना चाहे चिड़िया !
बाहर पूरी कायनात है
चाहे जहाँ बनाये घर वो
न जाने क्यों घर के भीतर
बसना उसको भाए अब तो !
पूजा वाली शेल्फ पे बैठी
कभी ठिकाना अलमारी पर
इधर भगाया उधर आ गयी
विरोध जताती चीं चीं कर !
हार गए सभी किये उपाय
तोड़ दिया घर कितनी बार
लेकिन उसका धैर्य अनोखा
फिर-फिर लाती तिनके चार !
बंद हुआ जो एक मार्ग तो
झट दूजा उसने खोज लिया
खिडकी की जाली से आयी
कैसे निज तन को दुबलाया !
शायद उसको जल्दी भी हो
अब नयी जगह ढूंढे कैसे
अप्रैल आधा बीत गया है
घर बस जाये जैसे तैसे !
अनिता निहालानी
२९ अप्रैल २०११