वही
एक अनंत विश्वास
छा जाता है जब
जो सदा से वहीं था
सचेत हो जाता है मन उसके प्रति
तो चुप लगा लेता है स्वतः ही
वह अखंड मौन ही समेटे हुए है अनादि काल से
हर ध्वनि हर शब्द को
सारे सवाल और हर जवाब भी वहीं है
उसमें डूबा जा सकता है
मगन हुआ जा सकता भी
पर कहने में नहीं आता
वह कभी स्वयं को नहीं जताता
क्योंकि वहाँ दूजा कोई नहीं है
प्रेम की उस गली में
केवल एक वही रहता है
जिससे यह सारा अस्तित्त्व
बूँद बूँद बन कर बहता है !