वातायन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
वातायन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, जुलाई 1

मौन मात्र पर अपना हक है


मौन मात्र पर अपना हक है 

एक हवा का झोंका आकर
पश्चिम वाली खिड़की खोले, 
दिखी झलक मनहर फूलों की
हिला गया पर्दा जोरों से !  

पूरब वाले वातायन से
देखो पवन झंकोरा आया,
सँग सुवास मालती की ला
झट कोना-कोना महकाया !

एक लहर भीतर से आयी
कोई आतुर मन अकुलाया,
एक ख्याल कहीं से आया
देखो उसका उर उमगाया !

हवा नशीली कभी लुभाती
तप्त हुई सी कभी जलाती,
लेकिन उस पर जोर है किसका
हुई मस्त वह रहे सताती !

ऐसे ही तो ख्यालात हैं
जिनकी भीड़ चली आती है,
जरा एक को पुचकारो तो
सारी रेवड़ घुस आती है !

पहले जो अहम् लगते थे
अब उन पर हँसी आती है,
ऐसे दलबदलू के हाथों
क्या लगाम फिर दी जाती है !

 मौन मात्र पर अपना हक है 
सदा एकरस, सदा मीत ये,
उसमें रह कर देखें जग को
बढ़ती रहे नवल प्रीत ये !