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मंगलवार, मई 3

आज खिले कल मुरझाएंगे



आज खिले कल मुरझाएंगे

पल-पल हाँ से नहीं हो रहे
छिन-छिन हम तुम शेष हो रहे,
चुक जाना है नियति अपनी
थम जायेगी गति जीवन की !

काल सिंधु में बहे जा रहे
तिल-तिल घटना सहे जा रहे,
आज खिले कल मुरझाएंगे
गंध पवन को दे जायेंगे !

इक-इक कर वह चुने जा रहे
मृत्यु माल में गुंथे जा रहे,
स्वप्न सरीखा था जो बीता
कितना भरा रहा मन रीता !

रीते मन के साथ जी रहे
नश्वरता के घूंट पी रहे,
पल-पल हाँ से नहीं हो रहे
छिन-छिन हम तुम शेष हो रहे !

अनिता निहालानी
३ मई २०११