आज खिले कल मुरझाएंगे
पल-पल हाँ से नहीं हो रहे
छिन-छिन हम तुम शेष हो रहे,
चुक जाना है नियति अपनी
थम जायेगी गति जीवन की !
काल सिंधु में बहे जा रहे
तिल-तिल घटना सहे जा रहे,
आज खिले कल मुरझाएंगे
गंध पवन को दे जायेंगे !
इक-इक कर वह चुने जा रहे
मृत्यु माल में गुंथे जा रहे,
स्वप्न सरीखा था जो बीता
कितना भरा रहा मन रीता !
रीते मन के साथ जी रहे
नश्वरता के घूंट पी रहे,
पल-पल हाँ से नहीं हो रहे
छिन-छिन हम तुम शेष हो रहे !
अनिता निहालानी
३ मई २०११