विवाह की पचीसवीं सालगिरह पर
स्वयं को केंद्र मानकर
दूसरे को चाहना पहली मंजिल है
जो वर्षों पहले आप दोनों ने पा ली थी
दूसरे को केंद्र मानकर
स्वयं को समर्पित कर देना दूसरी
जिसकी तलाश पूरी होने को है
न स्वयं, न दूसरे को
अस्तित्त्व को केंद्र मानकर
मुक्त हो जाना अंतिम सोपान है
जिसकी दुआ हम देते हैं
खुद से पार चला जाये जब कोई
तब सिद्ध होता है अभिप्राय
आप के जीवन में
जल्दी ही ऐसा दिन आए !