जीवन का गीत
हर तरफ है शोर
भीड़ और दुःख का साम्राज्य...
बहते हुए अश्रु, सिसकियाँ और अर्थहीन आवाजें
जीवन जैसे एक खोल में सिमट आया हो
उड़ने के लिए गगन तो है मगर भरा है धुँए से
त्राण यदि पाना है तो भीतर ही जाना है
बाहर का सब कुछ कितना बेगाना है
शब्द हैं, चेहरे हैं, बातें हैं खोखली
पर इन अर्थहीन बातों में ही जीवन को पाना है
सरल दृष्टि सरल उर सब पर लुटाना है
नहीं कहीं मुक्ति और, नहीं कोई स्वर्ग और
कला की ऊंचाइयों को
ओस की बूंदों में पिरोये हुए पाना है
शब्दों के जंगल से पार हुआ मन कहे
जीवन का गीत अब मौन में ही गाना है
कमी कुछ नहीं कहीं, हर घड़ी पूर्ण है
नहीं है अभाव कोई, नहीं कहीं जाना है !