सोमवार, दिसंबर 30

नये वर्ष की शुभकामनायें


नये वर्ष की शुभकामनायें 


जब तक हाथों में शक्ति है
जब तक इन कदमों में बल है,
मन-बुद्धि जब तक सक्षम हैं
तब तक ही समझें कि हम हैं !

जब तक श्वासें है इस तन में
जब तक टिकी है आशा मन में,
तब तक ही जीवित है मानव
वरना क्या रखा जीवन में !

श्वास में कम्पन न होता हो
मन स्वार्थ में न रोता हो,
बुद्धि सबको निज ही माने
स्वहित, परहित में खोता हो !

जब तक स्व केंद्रित स्वयं पर
तब तक दुःख से मुक्ति कहाँ है,
ज्यों-ज्यों स्व विस्तृत होता है
अंतर का बंधन भी कहाँ है !

जब तक खुद को नश्वर जाना
अविनाशी शाश्वत न माने,
तब तक भय के वश में मानव
आनंद को स्वप्न ही जाने !


शनिवार, दिसंबर 28

कुदरत की रीत अनोखी है

कुदरत की रीत अनोखी है

जो खाली है वह भरा हुआ
जो कुछ भी नहीं वही सब कुछ,
कुदरत की रीत अनोखी है
जो लुटा रहा वह ही पाता !  

जो नयन मुँदे वे सब देखें
उस की यह कैसी चतुराई,
थम जाता जो वह ही पहुँचा
जो हुआ मौन सब कह जाता !

जो जाने कुछ वह क्या जाने
ज्ञानी बालक सम बन जाता,
पा लेता सब कुछ खोकर भी
यह राज न जगत समझ पाता !

जो दूर बहुत वह निकट अति
जो स्वयं से प्रीत करे न थके,
पाकर जिसको मन खो जाये
 फिर कौन यह भेद कहे जाता ! 

शुक्रवार, दिसंबर 27

शाहों का शाह था

शाहों का शाह था 

अपनी ही छाया से अक्सर डर जाता है
भीरु उससे बढ़ कोई नजर नहीं आता है

स्वप्न पर विश्वास करे जो आँख मूंद कर
सत्य से सदा दूर-दूर भाग जाता है

जाने किस आस में दौड़ता ही जा रहा
पाँव तले क्या दबा देख नहीं पाता है

बंधन हजार बांधे रिस रहे घाव से
झूठी मुस्कान पहन खूब खिलखिलाता है

कौन बढ़े नाम करे किसका गुणगान हो
झांके यदि मानस में कोई नहीं पाता है

छाया का झूठ जब कभी नजर आये भी
मद की आड़ में उसको छुपाता है

शाहों का शाह था जाने क्यों भूल गया
कण भर ख़ुशी हित जिन्दगी लुटाता है


मंगलवार, दिसंबर 24

नया वर्ष आने वाला है




नया वर्ष आने वाला है  

धरती ने की पूर्ण सूर्य की
इक परिक्रमा देखो और,
बीत गयीं कुछ अमावसें व
जगीं पूर्णिमाओं की भोर !

पुनः ली करवट ऋतु चक्र ने
सहज पुकारे है जीवन,
हुई शोख रंगत फूलों की
सुन भ्रमरों की बढ़ती गुंजन !

अनल गगन की नव रश्मि से
हम भी तो भीतर सुलगा लें,
भरकर भीतर नई ऊष्मा
कुहरा मन का छंट जाने दें !

करें पूर्ण जो रहा अधूरा
जो छूटे संग उन्हें ले लें,
धूल सा झाड़ें जो अनचाहा
तज अतीत हल्के हो लें !

उम्मीदों की धूप जगाएं
ख्वाब भरें सूनी आँखों में,
रब ने दी जिन्दगी जिनको
न्याय मांगते पर राहों में !

प्रेम जग दिलों में उनके 
लोभ, स्वार्थ जहाँ है भारी,
नये वर्ष में यही प्रार्थना,
कोई न भूखा, न लाचारी !

नहीं घुले जहर मिट्टी में
हों निर्मल नदियों के जल,
शुद्ध हवाएं, कटें न जंगल
तंग न हो किसी का दिल !

बेवजह गमजदा आदमी
जागे वह खुद को पहचाने,
नहीं गुलामी करे किसी की
आजादी का सुख भी जाने !

एक नयी आस्था भीतर  
जीवन का आधार बने,
जीत सत्य की ही होगी
पुनः यही हुंकार उठे !

भय से नहीं प्रेम से जोड़ें
शुभ संस्कृतियाँ पुनः खिलें,
नया वर्ष आने वाला है  
खुशियों की सौगात मिले !

बुधवार, दिसंबर 18

क्रिसमस उसकी याद दिलाता

क्रिसमस उसकी याद दिलाता



क्रिसमस उसकी याद दिलाता
जो भेड़ों का रखवाला था,
आँखें करुणा से नम रहतीं
मन जिसका मद मतवाला था !

जो गुजर गया जिस घड़ी जहाँ
फूलों सी महकीं वे राहें,
दीनों, दुखियों की आहों को
झट भर लेती उसकी बाहें !

सुन यीशू के उपदेश अनोखे
 भीड़ एक पीछे चलती थी,
भर अधिकार से कहते थे वह
 चकित हुई सी वह गुनती थी !

नहीं रेत पर महल बनाओ  
जो पल भर में ही ढह जाते,
चट्टानों पर नींव पड़ी तो  
गिरा नहीं सकतीं बरसातें !

यहाँ मांगने से मिलता है
 खोला जाता है यह द्वार,
ढूंढेगा जो, पायेगा ही
प्रभु लुटाने को तैयार !

कितने रोगी स्वस्थ हुए थे
अनगिन को दी उसने आशा,
तूफानों को शान्त किया था
अद्भुत थी जीसस की भाषा !

प्रभु के प्यारे पुत्र कहाते
जन-जन की पीड़ा, दुःख हरते,
एक बादशाह की मानिंद वे
संग शिष्यों के डोला करते !

जो कहते थे, पीछे आओ
सीखो तुम भी मानव होना,
हूँ पुत्र प्रिय परमेश्वर का 
मैं जानता मार्ग स्वर्ग का !

संकरा है वह द्वार प्रभु का
 उससे ही होकर जाना है,
यीशू ने जो बात कही थी
 आज उसे ही दोहराना है ! 

शुक्रवार, दिसंबर 13

पावनी प्रकृति

पावनी प्रकृति

ठंड एकाएक बढ़ गयी थी 
ढक लिया परिवेश को
 कुहरे की घनी चादर ने
वृक्ष के नीचे टपक रही बूँदे
भीगा था घास का हर तिनका
उसने अलाव में जलती लकड़ियों को
 थोड़ा आगे खिसका दिया
 लपेट लिया कम्बल को चारों ओर
मैला-कुचैला उसका कुत्ता भी
थोड़ा नजदीक सरक आया  
 और तभी हवा के तेज झोंके से
खुल गया उसकी झोंपड़ी का किवाड़  
हिमपात हो रहा था बाहर
श्वेत कतरे उतर रहे थे हौले हौले
धरा को संवारने आए हों जैसे
दरख्तों ने ओढ़ ली थी श्वेत चादर
रस्ते खो गये थे और एक सी लग रही थीं
 मकानों की छतें
भूल गया वह किवाड़ बंद करना
देखने लगा एकटक
प्रकृति के इस खेल को
इस मौसम की यह पहली बर्फ है
कितनी मोहक और पवित्र  
खड़े-खड़े हाथ जोड़ दिए उसने !

सोमवार, दिसंबर 9

तुम


तुम

मैंने जान लिया है कि
दीपक की लौ को तुमने
हाथों से ओट दी है
आँधियों की परवाह न करते हुए
मुझे उसमें तेल डालते रहना है !

हृदय को मुक्त रखना है भय से
क्योंकि एक अदृश्य घेरा
बनाया है तुमने चारों ओर !

भीतर बाहर मुझे एक सा होना है
 क्योंकि तुम कभी गहरे उतर जाते हो
तकने लगते हो आकर सम्मुख
कभी अचानक !

शुक्रवार, दिसंबर 6

नेता और नाता

नेता और नाता



नेता का जनता से अटूट नाता है
पर कोई बिरला ही इसे निभाता है
जनता ने उसे चुना
अपनी आवाज बनाया
निश्चिन्त हो गयी
अपने स्वप्नों को उसे सौंप
पर नेता का नाता
टूट गया जनता से उसी वक्त
जब उसे राज सिंहासन दिखा
सत्ता पर विराजते ही
शोर प्रतीत होने लगी
 जनता की पुकार
स्वर भर लिए चाटुकारों के
अपने कानों में उसने
उड़ने लगा आकाश में
सुख-सुविधाओं का चश्मा लगाये आँखों पर
जनता, जो पहले उसके पीछे चलती थी
बुलेट प्रूफ शीशों के पीछे धकेल दी गयी  
किसी और नेता की प्रतीक्षा में
बैठी है फिर आँखें बिछाए जनता...




मंगलवार, दिसंबर 3

आज विश्व विकलांग दिवस है



एक ज्योति स्नेह की

मृणाल ज्योति कुमुद नगर, दुलियाजान में स्थित एक ऐसी संस्था है, जहाँ हर किसी का स्वागत किया जाता है. जहाँ के विशेष बच्चे, जिन्हें देखकर पहले-पहल मन में पीड़ा जगती है, अपनी मुस्कान से अतिथियों का मन हल्का कर देते हैं, चाहे वे स्वयं छोटी-छोटी खुशियों से भी वंचित क्यों न हों. यह एक ऐसी संस्था है जिसका उद्देश्य बाधाग्रस्त बच्चों को, जो किसी न किसी कारण से स्वयं को अक्षम पाते हैं, इतना समर्थ बनाना है जिससे वे भी समाज में सम्मान पूर्वक जी सकें. शारीरिक, मानसिक, एन्द्रिक या बौद्धिक विकास में किसी प्रकार की कमी से ग्रस्त बच्चे विकलांगता की श्रेणी में आते हैं. ऐसे बच्चों के लिए विशेष स्कूल खोलने की आवश्यकता होती है क्योंकि उन तक ज्ञान व संदेश पहुँचाने की विधि भिन्न है. १९९९ में जब इस संस्था का जन्म हुआ, इस क्षेत्र में ऐसे विशेष बच्चों के लिए, जिन्हें खास देखभाल की जरूरत होती है, कोई स्कूल नहीं था. धीरे-धीरे इस संस्था का विस्तार हुआ और आज इस क्षेत्र की यह एक मात्र संस्था है जिसमें लगभग एक सौ चालीस बच्चों का दाखिला हुआ है, उनमें से कुछ जो दूर रहने के कारण तथा कुछ ज्यादा अस्वस्थ होने के कारण नियमित रूप से स्कूल नहीं आ पाते, उनके घर जाकर माता-पिता को इस बात से अवगत कराया जाता है कि वे अपने बच्चों को रोजमर्रा के कार्यों को करने में कैसे आत्मनिर्भर बनाएं. यहाँ ट्रेनिंग पाए हुए शिक्षक भी हैं और फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा इलाज की सुविधा भी. ज्यादातर बच्चे गरीब तबकों से आते हैं, जिनकी विकलांगता का कारण कुपोषण भी हो सकता है और माँ का अस्वस्थ होना भी.
आज इस संस्था ने चौदह वर्ष पूर्ण कर लिए हैं, और शिक्षा, इलाज तथा पुनर्वास के लिए पूरे मनोयोग से काम कर रही है. दुलियाजान के आस-पास तथा दूर-दराज के गावों से भी लोग इस संस्था से जुड़े हैं, ताकि वे रोजगार दिलाने वाली शिक्षा द्वारा बेहतर जीवन जीने के अवसर पा सकें. यहाँ समय-समय पर मछली पालन, पौधों की नर्सरी बनाना, बत्तख पालन, सिलाई का काम, वेल्डिंग आदि सिखाया जाता है. हाथ से कलात्मक वस्तुएं बनाना, राखियाँ तथा दीये बनाना भी सिखाया जाता है. कुछ बच्चे जो यहाँ शिक्षा पा चुके हैं अपना निजी रोजगार खोल चुके हैं, कुछ दुकानों पर मैकेनिक का काम करते हैं.

यहाँ पैर से लिखने तथा चित्र बनाने वाले एक छात्र को तथा सुंदर नृत्य करते छात्र-छात्राओं को देखकर सहज ही मन में विचार उठता है कि विकलांगता अभिशाप नहीं है, यह एक चुनौती है. शारीरिक रूप से अक्षम होते हुए भी कई बच्चे मानसिक रूप स्वस्थ हैं, कुछ में सुनने की क्षमता न होते हुए भी सीखने का पूर्ण जज्बा है. यूँ देखा जाये तो जीवन में सबसे बड़ी कमी है ‘उत्साह की कमी’ जो अच्छे-भले इन्सान को निर्बल बना देती है. इन बच्चों का उत्साह देखते ही बनता है. वास्तविकता यह भी है कि इस दुनिया में कोई भी पूर्ण नहीं है. कोई न कोई कमी तो हरेक में होती ही है. इन्हें विकलांग न कहकर विशेष कहना ज्यादा उचित होगा जिन्हें कुछ विशेष सुविधाएँ चाहियें. मृणाल ज्योति जैसी संस्थाएं समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, वे पीड़ित परिवारों के जीवन में आशा की किरण जगाती हैं, उन्हें एक ऐसे पथ का ज्ञान कराती हैं जो शक्ति, उत्साह तथा क्षमता से भरा है.    

रविवार, दिसंबर 1

उन सभी अभी-अभी सेवानिवृत्त हुए भाइयों के लिए जिनका आज जन्म दिन है


बड़े भाई को जन्मदिन पर 

बिटिया के प्यारे पापा हैं
लाखों में हैं एक हमारे भैया,
 भाभी के जीवन का रंग,
दिल के बड़े हैं नेक हमारे भैया !

सुंदर चेहरा, कद भी लम्बा
बड़े सभी में लगते भी हैं,
हाफ सेंचुरी, एक दशक पर
दूजी इनिंग खेल रहे हैं !

अभी-अभी विश्राम मिला था
पुनः हाथ में ली कलम !
कर्मठता से जीया जीवन
श्रम करने का है दमखम !

पढ़ना-लिखना बहुत सुहाए
 काम से अपने रखते काम,
मौन रहें, सबकी सुनते हैं
दिल में उनके बसते राम !

आज यही कामना सबकी
साथ सदा पूरा परिवार,
बढ़ते रहें सदा ही आगे
बांटे सबको स्नेह दुलार !

जन्मदिन पर बहुत बधाई
स्वास्थ्य मिले मन का संतोष,
इसी तरह हर पल जीवन में
भरा रहे अंतर में जोश !