एक अमिट मुस्कान छिपी है
एक अमिट मुस्कान छिपी है
उर अंतर की गहराई में,
वह मनमोहन यही चाहता
उसे खोज लें फिर बिखरा दें !
चलना है पर चल न पाए
भीतर एक कसक खलती है,
उस पीड़ा के शुभ प्रकाश में
इक दिन हर बाधा टलती है !
मीलों का पथ तय हो जाता
यदि संकल्प जगा ले राही,
हाथ पकड़ लेता वह आकर
जिसने उसकी सोहबत चाही !
अल्प बुद्धि छोटा सा मन ले
जीवन को हम कहाँ समझते,
जन्म-मरण सदा एक रहस्य
आया माधव यही बताने !
कण-कण में जो रचा बसा है,
प्रीत सिखाने जग में आया
अपनी शुभता करुणा से वह
मानव को हरषाने आया !