हवा में क्रांति की गंध है, बरसों पूर्व भी एक क्रांति हुई थी
हो सकता है आप में से कुछ लोग किसी न किसी रूप में उस क्रांति से
जुड़े हों, मैंने पुरानी डायरी में यह कविता देखी तो कई यादें पुनः ताजा हो गयीं
श्री जयप्रकाश नारायण जी के देहांत के बाद कॉलेज की एक सभा में इसे पढ़ा था.
जेपी नहीं रहे
जेपी नहीं रहे !
कहाँ नहीं रहे ?
पटना की सुगबुगाती गलियों में,
उनके चंद दावेदारों के कब्जे में,
या इन संकीर्ण मनोवृत्ति वाले
तथाकथित जननेताओं की भीड़ में,
यह ठीक ही हुआ कि जेपी वहाँ नहीं रहे !
जेपी यहाँ हैं
जहाँ आशाएं जन्म लेती हैं
उनकी तेजस्वी वाणी के एक एक शब्द से
एक एक नौजवान पैदा होता है,
अपने देश व आदर्शों के लिये !
जेपी यहाँ हैं
मेरे इस मन में
जब जब उनकी उपस्थिति महसूस की है
किसी कलम के माध्यम से,
या किन्हीं नौजवान आँखों के माध्यम से,
भीतर एक ज्वालामुखी उफनते महसूस किया है
नए विचारों, आदर्शों पर
मर मिटने की लहर ने मुझे डुबा लिया है !
जब जब उनकी विचारयात्रा की सीढ़ियां
उनके कदमों से चलते देखी हैं
महसूस किया है कि
मेरे सीने में धड़कता हुआ दिल जेपी का है
उतनी ही तेजी, उत्सुकता और अकुलाहट से
भर जाते हैं वे लोग,
जो उनके साथ होकर जीना चाहते थे
उनके साये के नीचे
पर अब वह वृक्ष नहीं रहा !
जेपी नहीं रहे
वह हैं वहाँ, जहाँ आस्थावान, कर्मठ
जीवन क्रांति के फूल बिखेरा करते हैं
मैंने देखा है उन्हें धीमे कदमों से चलते
मगर तेज विचारों से सोचते
जेपी नाम है साहस पुंज का
उस दीपक का
जो बापू जलता हुआ छोड़ गए थे
वह दीपक बुझ कर भी
अपने प्रकाश से सबको प्रकाशित करेगा
वह दीपक अब मेरे मन में जलता है !
अनिता निहालानी