सोमवार, फ़रवरी 28

एक और आजादी

एक और आजादी

कौन आजाद हुआ
किसके माथे से गुलामी की स्याही छूटी
दिलों में दर्द है बिगड़ते हालातों का
मादरे हिंद के माथे पे उदासी है वही
खंजर आजाद हैं सीनों में उतरने के लिये
मौत आजाद है लाशों पे गुजरने के लिए !

मगर हर क़ुरबानी 
करीब ले न जाएगी मंजिल के ?
राह दिखाती है उम्मीद यही लाखों को
छूटेगी जमीं से गुलामी की स्याही
शहादत इक दिन तो रंग लाएगी
फिर से खुशियों का परचम फहरेगा  
सिलसिला जीत का जारी हो जारी रहेगा !

होगा आजाद हर शख्स भुखमरी से तब
मिलेगी शिक्षा खुशहाली नजर आयेगी
बेईमान नहीं होंगे शासक अपने
बजेगी बंसी चैनो-अमन की हर तरफ
दुनिया देखेगी चिड़िया एक सोने की
देश बढ़ेगा ध्वजा सत्य की लहराएगी !


अनिता निहालानी
२८ फरवरी २०११




शनिवार, फ़रवरी 26

अनुत्तरित प्रश्न

अनुत्तरित प्रश्न

पंछी तेरा गान सुनूं या उस भोले बालक का क्रन्दन
तेरा सुंदर रूप निहारूं या जिसका उजड़ा वन नन्दन !

एक नहीं अनगिनत प्रश्न हैं झांक रहे उसकी आँखों से
वह क्या है, क्यों है, कब से है उड़ रहा कल्पना पांखों से !

देश की वृहत्त योजनाओं में कहीं भी उसका नाम नहीं
उसको भी संविधान संशोधन से होगा कोई काम नहीं !

शिक्षा में आमूल परिवर्तन या समाजवाद का नारा हो
उसको शिक्षा कहाँ मिलेगी देश जो उसको प्यारा हो !

अनिता निहालानी
२६ फरवरी २०११ 

 

शुक्रवार, फ़रवरी 25

जेपी नहीं रहे

हवा में क्रांति की गंध है, बरसों पूर्व भी एक क्रांति हुई थी
हो सकता है आप में से कुछ लोग किसी न किसी रूप में उस क्रांति से
जुड़े हों, मैंने पुरानी डायरी में यह कविता देखी तो कई यादें पुनः ताजा हो गयीं
श्री जयप्रकाश नारायण जी के देहांत के बाद कॉलेज की एक सभा में इसे पढ़ा था. 

जेपी नहीं रहे

जेपी नहीं रहे !
कहाँ नहीं रहे ? 
पटना की सुगबुगाती गलियों में,
उनके चंद दावेदारों के कब्जे में,
या इन संकीर्ण मनोवृत्ति वाले
तथाकथित जननेताओं की भीड़ में,
यह ठीक ही हुआ कि जेपी वहाँ नहीं रहे !

जेपी यहाँ हैं
जहाँ आशाएं जन्म लेती हैं
उनकी तेजस्वी वाणी के एक एक शब्द से
एक एक नौजवान पैदा होता है,
अपने देश व आदर्शों के लिये !

जेपी यहाँ हैं
मेरे इस मन में
जब जब उनकी उपस्थिति महसूस की है
किसी कलम के माध्यम से,
या किन्हीं नौजवान आँखों के माध्यम से,
भीतर एक ज्वालामुखी उफनते महसूस किया है
नए विचारों, आदर्शों पर
मर मिटने की लहर ने मुझे डुबा लिया है !  

जब जब उनकी विचारयात्रा की सीढ़ियां
उनके कदमों से चलते देखी हैं
महसूस किया है कि  
मेरे सीने में धड़कता हुआ दिल जेपी का है
उतनी ही तेजी, उत्सुकता और अकुलाहट से
भर जाते हैं वे लोग,
जो उनके साथ होकर जीना चाहते थे
उनके साये के नीचे
पर अब वह वृक्ष नहीं रहा !

जेपी नहीं रहे
वह हैं वहाँ, जहाँ आस्थावान, कर्मठ
जीवन क्रांति के फूल बिखेरा करते हैं
मैंने देखा है उन्हें धीमे कदमों से चलते
मगर तेज विचारों से सोचते
जेपी नाम है साहस पुंज का
उस दीपक का
जो बापू जलता हुआ छोड़ गए थे
वह दीपक बुझ कर भी
अपने प्रकाश से सबको प्रकाशित करेगा
वह दीपक अब मेरे मन में जलता है !

अनिता निहालानी

२५ फरवरी २०११  

गुरुवार, फ़रवरी 24

ऐसा है आदमी




ऐसा है आदमी


खुद के बनाये जाल में जकड़ा है आदमी
वरना तो चाँद छू के आया है आदमी !

मंजिल की खोज में तो निकला था कारवां
मुड़ के जो राह देखी तनहा था आदमी !

मकसद सभी का साझा जन्नत बने ये दुनिया
फिर क्यों दीवारें दिल में चुनता है आदमी !

सुबह से शाम तक जो कसमें खुदा की खाए
अनजान ही खुदा से रहता है आदमी !

अनिता निहालानी
२४ फरवरी २०११

मंगलवार, फ़रवरी 22

स्वयं को ही जग माना हमने


स्वयं को ही जग माना हमने


स्वयं की सत्ता मान ली हमने
स्वयं को इतना मान दिया,
स्वयं की प्रभुता के आगे
न ईश को भी स्थान दिया !

झट कुम्हलाये, झट झुंझलाए
लघु ठेस भी सह न पाए,
पीड़ित अहं ने पीड़ा बांटी
कल्पित दुःख भी हमें सताए !

स्वयं के आगे नजर न जाती
स्वयं से शुरू स्वयं पर आती,
स्वयं को ही जग माना हमने
अल्प ज्ञान पर हम इतराए !

प्रेम किया तो नापतोल कर
कुछ देकर कुछ वापस लेकर
उथले उथले जल में जाकर
झूठे मोती हम ले आये !

अनिता निहलानी
२२ फरवरी २०११

सोमवार, फ़रवरी 21

दुलियाजान में रामदेव जी

दुलियाजान में रामदेव जी

हे युगपुरुष ! हे युग निर्माता !
हे नव भारत भाग्य विधाता !
हे योगी ! सुख, प्रेम प्रदाता
तुम उद्धारक, हे दुःख त्राता !

तुम अनंत शक्ति के वाहक
योगेश्वर, तुम सच्चे नेता !
प्रेम की गंगा बहती तुममें
तुमने कोटि दिलों को जीता !

जाग रहा है सोया भारत
आज तुम्हारी वाणी सुनकर,
करवट लेता ज्यों इतिहास
अंधकार में उगा है दिनकर !

तुम नई चेतना बन आये
कांपे अन्यायी, जन हर्षे,
तोड़ने गुलामी की बेड़ियां  
तुम सिंह गर्जना कर बरसे !

तन-मन को तुमने साधा है
हो घोर तपस्वी, कर्मशील तुम,
श्वास- श्वास को देश पे वारा
अद्भुत वक्ता, हो मनस्वी तुम !

शब्दों में शिव का तांडव है
आँखों से हैं राम झलकते,
कृष्ण की गीता बन हुंकारो
नव क्रांति के फूल महकते !

जीवन के हर क्षेत्र के ज्ञाता
कैसे अनुपम ध्यानी, ज्ञानी,
वैद्य अनोखे, किया निदान
भारत की नब्ज पहचानी !

 राम-कृष्ण की संतानें हम
सत्य-अहिंसा के पथ छूटे,
डरे हुए सामान्य जन सब
आश्वासन पाकर गए लूटे !

आज पुण्य दिन, बेला अनुपम
दुलियाजान की भूमि पावन,
गूंज उठी हुंकार तुम्हारी 
दिशा-दिशा में गूँजा गर्जन !

आज अतीत साकार हो उठा
संत सदा रक्षा को आये,
जब जब भ्रमित हुआ राष्ट्र
संत समाज ही राह दिखाए !

भूला नहीं है भारत अब भी
रामदास व गोविन्द सिंह को,
अन्याय से मुक्त कराने
खड़ा किया था जब सिंहों को !

आज पुनः पुकार समय की
देवत्व तुम्हारा रूप प्रकट,
त्राहि-त्राहि मची हुई है
समस्याओं का जाल विकट !

नयी ऊर्जा सबमें भरती
ओजस्वी वाणी है तुम्हारी,
बदलें खुद को जग को बदलें
जाग उठे चेतना हमारी !

योग की शक्ति भीतर पाके
बाहर सृजन हमें करना है,
आज तुम्हारे नेतृत्व में
देश नया खड़ा करना है !

व्याधि मिटे समाधि पाएँ
ऐसा एक समाज बनायें,
जहाँ न कोई रोगी, पीड़ित
स्वयं की असलियत पा जाएँ  !

भ्रष्टाचार मिटे भारत से
पुनर्जागरण, रामराज्य हो,
एक लक्ष्य, एकता साधें
नव गठित भारत, समाज हो !

कोटि कोटि जन साथ तुम्हारे
उद्धारक हो जन-जन के तुम,
पुण्य जगें हैं उनके भी तो
विरोध जिनका करते हो तुम !

अनिता निहालानी
२१ फरवरी २०११




 
 


शुक्रवार, फ़रवरी 18

मन होता है

मन होता है

कोमल रंग भावनाओं के
कुछ नीले गगन पे उकेरूँ,
सारी धरती भर जाये फिर
सच्चाई के बीज बिखेरूं !

छंटे अँधेरा हर इक मन का
कुछ पल मैं सूरज बन जाऊँ,
सहज स्नेह फूटे अंतर में
ऐसे सुंदर गीत सुनाऊँ !

टूटे दिल जुड़ जाएँ फिर से
मैं हर इक को आस बधाऊँ
अंतर में सोई श्रद्धा को
भेज भेज संदेश जगाऊँ !

अनिता निहालानी
१८ फरवरी २०११

गुरुवार, फ़रवरी 17

बस यह अंतिम प्रयास हो

बस यह अंतिम प्रयास हो


जल जाये, हमारी अशुभ कर्मों की वासना
जल जाये
तुम्हारे ज्ञान के धूमकेतु से
शेष न रहे, कोई अशुभ संस्कार
कर्म कोई, न बने बंधन
ज्ञान की तलवार से काट डालें
कर्मों के जाल,
जन्मों से जो सता रहे हैं
जल जाएँ दंश उन कर्मों के !

मिट जाये मन की चाह
थम जाये विचारों का प्रवाह
ठहर जाये मन तुम्हारे रूप पर
तुम्हारे सौंदर्य, तुम्हारी सत्यता पर
उस शाश्वतता पर,
जो कभी प्रेम, कभी आनंद बन सम्मुख आती है
कभी करुणा तो कभी
विशुद्ध साहचर्य का भाव बनकर,
निर्दोष प्रकृति के अल्हड़ रूप बनकर
तो कभी भयावह प्रकृति के भीषण प्रकोप बनकर !

हमने सिरों को बचाकर देख लिया
हम असत्य के पुजारी बने रहे
हमने अपने को बहुत आजमाया
अब और नही,
बस यह अंतिम प्रयास हो !


अनिता निहालानी
१७ फरवरी २०११

मंगलवार, फ़रवरी 15

वही तो है

वही तो है

विस्तृत नभ की शुभ्र नीलिमा
पर्वत, जंगल की हरीतिमा
महा अंतरिक्ष की अनंतता
कण-कण में छाई जीवन्तता

छुपा सभी में वही तो है !

सिंधु लहरियों के गर्जन में
शांत सरों के जल दर्पण में
फेन, झाग, बूंद में समाया
लहर-लहर में उसकी छाया

बसा सभी में वही तो है !

हो संध्या की श्यामलता, या
मधुर चाँदनी की कोमलता
अर्धरात्रि की नीरवता में
नव किरण की सलज्जता में

रमा सभी में वही तो है !

अनिता निहालानी
१५ फरवरी २०११   

सोमवार, फ़रवरी 14

तुम कितने अच्छे लगते हो

तुम कितने अच्छे लगते हो

कण-कण में तुम व्याप रहे हो
प्रेम नीर बन सदा बहे हो,
हर दिल में तुम ही बसते हो
तुम कितने अच्छे लगते हो !

धरा, गगन के अंतराल में
फांसा करते जीव जाल में,
पवन, अगन में छुपे हुए हो,
मन, बुद्धि में रमे हुए हो !

युग-युग से पूजते पुजारी
अचरज लेकिन कितना भारी,
 सदा कृपा का जल बरसाते
नजर नहीं किसी को आते !

स्वप्नों में देखा है तुमको
दिलवालों ने पाया तुमको,
हाथ सदा आती है छाया
आँख खुली तो जग की माया !


अनिता निहालानी
१४ फरवरी २०११   

रविवार, फ़रवरी 13

कभी ऐसा भी तो करें

कभी  करें  कुछ ऐसा भी तो

फूलों से बतियाएं थोड़ा
हरी घास का बने बिछौना,
बांसों के झुरमुट में जाकर
ढूंढें कोई शीतल कोना !

कभी शहर से दूर गाँव में
पंचभूत से आँख मिलाएँ,
एक गगन हमारे भीतर
उससे भी पहचान बनाएँ !

देह धरा में गंध अनेकों
रक्त दौड़ता जल ही तो है,
पवन श्वास बन पलपल सँग है
प्रेम तपन अनल ही तो है !

इस तन को उतना ही दें हम
भार बने न यह जीवन पर,
मन को उतनी ही आजादी
उलझाये न कभी उलझ कर !

मुक्त गगन में उड़ सकते फिर
बंद गुफा में क्यों रहते हम,
बंधन मुक्त सदा रह सकते
पिंजरों में क्यों फंसते हम !

अनिता निहालानी
१३ फरवरी २०११