शुभ कर्मों का बहे मकरंद
चेतन अमर, अजर, अविनाशी
प्रेम, शांति व हर्ष का सागर,
अहंकार बिंधता स्वयं से
अहंकार सीमित सम कायर !
जीवन जैसा है, वैसा है
अहम उसे स्वीकार न पाए,
निज झूठी शान की ख़ातिर
लोकमत का शिकार हो जाए !
सीधी, सरल चेतना निर्मल
अहंकार कई दाँव खेले,
झूठ की कई दीवारों में
अपने हाथों क़ैदी हो ले !
क़ैद हुआ उनमें फिर खुद ही
कसता, घुटता, पीड़ित होता,
सच की एक मशाल जलाकर
अंधकार चैतन्य हटाता !
जय वहीं जहाँ सत्य पनपता
जीवन सत्य की खोज अनंत,
सत्य का पुष्प खिलेगा, जहाँ
शुभ कर्मों का बहे मकरंद !