मंगलवार, सितंबर 29

लताजी के जन्मदिन पर

लता मंगेशकर- भारत की महान गायिका

स्वर सम्राज्ञी, कोकिल कंठा
शान विश्व की, आन देश की 
भारत रत्ना लता महान 
सर्वोत्तम पहचान देश की !

हर्षित हुई इंदौर की भूमि
सन २९ में जन्म लिया, 
दीनानाथ, शुद्ध मती की 
सबसे बड़ी दुलारी कन्या !

हृदय नाथ की प्यारी दीदी 
बहनें आशा, उषा, मीना 
नन्हीं उमर में सीखा अभिनय 
सीखा सुर, लय, ताल में गाना I

अमान अली खां हों या अमानत 
लता सदा थीं गुणवती शिष्या
तेरह वर्ष की हुईं अभी थीं 
सर से उठा पिता का साया !

परिवार का बोझ आ पड़ा 
करना पड़ा फिल्मों में काज 
धीरे –धीरे गायन में वह 
सिद्ध हुईं बनी सरताज I

गीत हजारों तब से गाये 
जाने कितने दिल धड़काए 
जन्म दिवस पर लें बधाई 
बार अनेकों यह दिन आये !

सोमवार, सितंबर 28

फूल बना हो जैसे बीज

फूल बना हो जैसे बीज



एक ऊर्जा है अनाम जो
खींच रही है अपनी ओर,
पता ठिकाना नहीं है जिसका
दीवाना जिसका मन मोर !

प्रेम उमगता भीतर आता
उसकी कोई खबर न मिलती,
जिसकी तरफ उमड़ती धारा
जरा भी उसकी भनक न मिलती !

हृदय पिघलकर बहता जाता
दिशा नहीं नजर आती है,
‘मैं’ खोया जब बचे ‘वह’ कैसे
उसकी छाया मिट जाती है !

कण-कण में मधु बिखरा जिसका
कैसे एक दिशा में समाए,
पल-पल फिर अमृत बन जाता
मिटकर ही तो उसको पाए !

तृप्त हुआ फिर डोले उर यह
 फूल बना हो जैसे बीज,
मंजिल पर ज्यों राह आ मिली
छूटी डगर-डगर की प्रीत !



मंगलवार, सितंबर 22

जीवन ! कितना पावन !

जीवन ! कितना पावन !

सदा अछूता ! कोमल शतदल
सरवर में ज्यों खिला कमल हो,
राजहंस या तिरता कोई
दूर गगन तक उड़ सकता हो !

नन्ही बूंद ओस की जैसे
इन्द्रधनुष या पंख मयूर
कोमलतम या प्रीत हृदय की
बाल रवि का अरुणिम नूर !

निर्मल नभ की शुभ्र नीलिमा
मंद पवन वासन्ती या फिर,
रुनझुन हल्की सी पत्तों में
कलकल मद्धिम धारा का स्वर !

तुलसी दल की गंध सुहानी
श्वेत मालती की ज्यों माला,
मन्दिर में जलता दीपक या
मोती से जो बहे उजाला !



शुक्रवार, सितंबर 11

एक और अनेक


एक और अनेक

जैसे आकाश एक बाहर है चहुँ ओर
वैसा ही भीतर है..
जिसमें चमकता है एक सूरज
मन के पानियों को जो
उड़ा ले जाता है द्युलोक में
भाव सुगंध भरे
फिर बरस जाती है धारा तृप्ति की
तन की माटी लहलहाने लगती है
बाहर और भीतर का आकाश
कहने को ही दो हैं
वैसे ही जैसे बाहर और भीतर का सूरज
एक पानी से दूसरे का गहरा नाता है
और पुष्प की गंध से भाव सुगंधि का
एक ही है जो अनंत होकर जीता है
पल-पल की खबर रखता वह जादूगर
जाने कैसे यह खेल रचता है ! 

बुधवार, सितंबर 9

...नजरें जिसे ढूंढें



यूँ तो इस जहान में हजार फर्ज हैं
दिल दीवाना एक ही धुन गुन रहा कब से

होंगे हजारों मंजर नजरें जिसे ढूँढे
दिल के मकां में छुप गया खामोश वह जब से

नाता उसी की खातिर दुनिया से निभाया
दिल को जंचा है दिलनशीं वह हसीं अब से

थमती नहीं निगाहें लगता नहीं ये दिल
जहनेजिगर में सूरतेजां बस गयी तब से 

शुक्रवार, सितंबर 4

कृष्ण जन्माष्टमी पर

कृष्ण जन्माष्टमी पर

काल सुहाना बन आया था
भादों की अष्टमी आयी,
जगी दिशाओं में भी आशा
मंगलमयी भूमि हर्षाई !

नदियाँ भी आनंद से भरीं
सरवर खिले उत्प्लों से थे,
अग्नि प्रज्वलित हुई प्रसन्न हो,
वायु भरी स्नेह सुरभि से !

कारागार में जन्मे थे स्वयं
मुक्त किया जग भव बन्धन से
था नक्षत्र रोहिणी पावन
प्रकटे रस नन्द नन्दन थे !

थी मध्य रात्रि घोर अँधेरा
बनकर आये ज्यों दिनमान,
अद्भुत रूप धरा कृष्णा ने
कोमल काया कमल समान !

कानों में झिलमिल कुंडल
मोर पंख केशों में सज्जित,
अंग-अंग है सुंदर जिसका
ऐसे श्यामल महिमा मंडित !

दिव्य जन्म व कर्म दिव्य हैं
मुरली मनोहर मधुमय कृष्णा,
मिलन और विरह दोनों में
याद भी उनकी सुख स्वरूपा !

मंगलवार, सितंबर 1

कान्हा की हर बात निराली

कान्हा की हर बात निराली  




यमुना तट पर वृंदावन में
पुष्पित वृक्ष कदम्ब का सुंदर,
अति रमणीक किसी कानन में
जिस पर बैठे हैं मधुरेश्वर !

पीताम्बर तन पर धारे हैं
चन्दन तिलक सुगन्धित माला,
मंद हास से युक्त अधर हैं
कुंडल धारे वंशी वाला !

गोपों ग्वालों संग विचरते
गउओं ने जिनको घेरा है,
राधा प्रिय गोपी जन वल्लभ
जिनके उर सुख का डेरा है !

कालिय नाथ नथा सहज ही
गिरधर मोहन माखन चोर,
जिसने मारे असुर अनेकों
जन-जन बांधी उर की डोर !  

बादल भी रुक कर सुनते हैं
कान्हा की मुरली का गीत,
हिरन, मयूर चकित हो तकते
थम जाता कालिंदी नीर !