श्रद्धा का फूल
श्रद्धा का फूल
जिस अंतर में खिलता है
प्रेम सुरभि से
वही तो भरता है !
बोध का दिया जलता
अविचल, अविकंप वहाँ
समर्पण की आँच में
अहंकार ग़लता है !
श्रद्धा का रत्न ही
पाने के काबिल है
स्वप्न से इस जगत में
और क्या हासिल है
आनंद की बरखा में
भीगता कण-कण उर का
सारी कायनात
इस उत्सव में शामिल है !
हरेक ऊहापोह से
श्रद्धा बचाती है
चैन की एक छाया
जैसे बिछ जाती है
जो नहीं करे आकलन
नहीं व्यर्थ रोकटोक
श्रद्धा उस प्रियतम से
जाकर मिलाती है !
श्रद्धा का दीप जले
अंतर उजियारा है
हर घड़ी साथ दे
यह ऐसा सहारा है
अकथनीय, अनिवर्चनीय
जीवन की पुस्तक को
इसने निखारा है !