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शुक्रवार, जून 3

तुमने उसका घर देखा है


तुमने उसका घर देखा है

है विस्तीर्ण, अनंत, असीम
कोई द्वार नजर न आता,
स्वर्णिम सी ज्योति बिखरी है
मद्धिम स्वर में कोई गाता !

नहीं क्षितिज की भी रेखा है
तुमने उसका घर देखा है !

मौन गूंजता प्रेम विहंसता
शांति पुष्प आनंद लुटाते,
सुख छौना अबाध विहरता
पावन अमृत के नद बहते !

उसी प्रिय का सब लेखा है
तुमने उसका घर देखा है !

खो जाते सब भाव इतर तब
ऊपर उठ जाता मन जग से
झलक यदि मिल जाये पल भर,
जल जाते संशय सब उर के !

दुःख केवल एक भुलेखा है
तुमने उसका घर देखा है !

अनिता निहालानी
३ जून २०११