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शुक्रवार, अगस्त 21

इच्छा से शुभेच्छा तक

  

इच्छा से शुभेच्छा तक

 


वस्तुओं की इच्छा 

भरमाती है चेतना को, 

व्यक्तियों की, रुलाती है !

सुख की अभिलाषा सुला देती है 

जब समूह की चेतना से 

जुड़ जाती है इच्छा

कुछ भी करवा ले जाती है 

नहीं होता भीड़ के पास मस्तिष्क

एक उन्माद होता है 

मिट जाता है भय

जो कर नहीं सकता था एक

समूह करवा लेता है उससे 

विपरीत इसके

हो यदि इच्छा ज्ञान की 

आनंद व प्रेम की !

शुभ की इच्छा ...जगे भीतर 

वह परम से मिलाती है !

मुक्ति का स्वाद चखाती है 

निर्द्वन्द्व होकर गगन में 

चेतना को उड़ना सिखाती है 

शुभेच्छा ही देवी माँ है 

जो शिव की प्रिया है ! 

 


गुरुवार, नवंबर 18

घर में उसको आने दो

घर में उसको आने दो

सिर पर हाथ सदा है उसका
बड़े प्यार से सहलाता है,
दिल से उसे पुकारो तो बस
सम्मुख तत्क्षण आ जाता है !

आना भी क्या, सदा यहीं है
उसकी ओर जरा मुख मोडो,
नेह-प्रेम से भर देगा वह
दामन, उससे  नाता जोड़ो !

इतने बड़े जहाँ का मालिक
पल-पल रहता निकट हमारे,
ओढ़ाये खुशियों की चादर
जीवन की हर घड़ी संवारे !

उसका मिलना ही मिलना है
जग सारा मिल मिल के बिछड़े
एक वही पाने के लायक
जग भी सुंदर, मिलकर उससे !

वैसे तो वह मिला हुआ है
हमने ही ना याद किया,
भीतर सूरज उगा हुआ है
हमने ही पट बंद किया !

उत्सव याद दिलाने आया
उसको ना वनवास कभी दो,
अगर दिया तो अवधि पूर्ण कर
घर में उसको आने तो दो !

अनिता निहालानी
१८ नवम्बर २०१०