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गुरुवार, मार्च 17

मादक अमृत सी ऋतु होली

होली
जीवन का प्रतीक वसंत है
यौवन का प्रतीक वसंत है,
होली मिश्रण है दोनों का
हँसता जिसमें दिग-दिगंत है !

रस, माधुर्य और सरसता
आशा, स्फूर्ति व मादकता
होली अंतर की उमंग है
अमर प्रेम की है गहनता !

जिंदादिल उत्साह दिखाते
शक्ति भीतर भर-भर पाते,
होली के स्वागत में आनंद 
पाते उर में और लुटाते !

सुंदर, शुभ कल्पना सजती
रंगों की आपस में ठनती,
लाल भाल, कपोल गुलाबी
मोर पंख सी चुनरी बनती !

फूलों से मन खिल-खिल जाते
अणु-अणु सृष्टि के मुस्काते,
लुटा रहा मौसम जो सुरभि
चकित हुए नासापुट पाते !

हरा-भरा प्रफुल्लित अंतर
कण-कण में झलके वह सुंदर,
मधुरिम, मृदुलिम निर्झर सा मन  
कल-कल करे निनाद निरंतर !

मादक अमृत सी ऋतु होली
अमराई में कोकिल बोली,
जोश भरा उन्मुक्त हृदय ले
निकली मत्त मुकुल की टोली !

अनिता निहालानी
१७ मार्च २०११