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सोमवार, मई 13

निर्मल बुद्ध चेतना लेकर


निर्मल बुद्ध चेतना लेकर
एक समन्दर विमल शांति का
एक बगीचा ज्यों पुष्पों का,
एक अनंत गगन सम विस्तृत
मौन एक पसरा मीलों का !

दिवस अवतरण का पावन है
बरसों पूर्व धरा पर आये,
निर्मल बुद्ध चेतना लेकर
भारत धरती पर मुस्काए !

शैशव काल से ही भक्ति का
बीज अंकुरित था अंतर में,
लाखों जन की पीड़ा हर लूँ
यह अंकित था कोमल उर में !

कड़ी तपस्या बरसों इस हित
सहज ध्यान में बैठे रहते,
जग को क्या अनमोल भेंट दूँ
इस धुन में ही खोये रहते !

ख़ुद कुछ पाना शेष नहीं था
तृप्त हुआ था कण-कण प्रभु से,
चिन्मय रूप गुरू का दमके
पोर-पोर भीगा था रस से !

परम क्रिया की कुंजी बाँटी 
राज दिया भीतर जाने का,
छुपा हुआ जो प्रेम हृदय में
मार्ग दिया उसको पाने का !

सद्गुरु को शत-शत प्रणाम हैं
कृपा बरसती है नयनों से,
शब्द अल्प हैं क्या कह सकते
तृप्ति झरे सुंदर बयनों से !

लाख जन्म लेकर भी शायद
नहीं उऋण हो सकता साधक,
गुरू की इक दृष्टि ही जिसको
करती पावन जैसे पावक !



बुधवार, मई 13

परम पूज्य गुरूजी के लिए जन्मदिन पर

परम पूज्य गुरूजी के लिए 
जन्मदिन पर श्रद्धा सुमन 

ज्ञान का दीपक जलाते 
प्रेम की सरिता बहाते,
दिवस हो या रात्रि पावन
अमरता का गीत गाते !

भय मिटाते हो दिलों से 
राह उज्ज्वल भी दिखाते, 
मौन की अनुगूँज से तुम 
विश्व का प्राँगण गुंजाते !

ज्यों जलों से भरा बादल
कृपा बनकर बरस जाते,
या घना विटप हो कोई 
छाँव में अपनी बिठाते !

सारा जहाँ घर तुम्हारा 
सभी को अपना बनाते, 
प्रीत डोरी से बंधे हैं 
दिलों को जीना सिखाते !

आत्मा का ज्ञान देकर 
युद्ध में लड़ना सिखाते,
ख़ुशी देने में छिपी है 
पाठ सेवा का पढ़ाते !

चाह जो मन में जगी हो 
हो समर्पित यह बताते, 
सहज ही सन्तुष्ट हो मन 
ध्यान का जादू सिखाते !

मरुथलों से दिल बने हैं 
कुसुम्भ भक्ति का खिलाते, 
कर्म की महिमा बताकर 
कर्मयोगी भी बनाते !

आज हर दिल की दुआ है 
बरसों जन्म दिन मनाएं,
पुष्प श्रद्धा के खिलाकर 
गीत ‘मैं तेरा’ ही गाएं !

बुधवार, जुलाई 10

तुम जाओ खिल


यह कविता उन सभी माँओं के नाम समर्पित है जिनके प्रथम पुत्र का इस माह जन्मदिन है 
तुम जाओ खिल 


जब अकेलापन खले था
समय भी काटे न कटता
दूर अपनों से बनाया
नीड़ भी कोमल अभी था
प्रेम से पहचान भी न थी पुरानी
घर नया, साथी नया था
स्वप्न तब देखा तुम्हारा
एक जीती जागती कविता से तुम
आ गये नव रंग भरने जिंदगी में
गूँजती किलकारियां, रोने के स्वर
गोद में फिर ले तुम्हें जागे पहर
आज भी सब याद है वह खिलखिलाना
जरा सी फटकार पर आँसू बहाना
आज फिर वही तिथि आयी
बारिशों के मध्य आती दस जुलाई
हो सबल, सुखमय बनी जीवन डगर
साथ देने को है प्यारी हमसफर
भाव मन में सदा देने का ही रखना
रात जल्दी सो सुबह जल्दी ही जगना
सीख बस इतनी सी देते हम तुम्हें
दी हैं हजारों नेमतें तुमने हमें
सत्य के पथ के सदा राही बनो
स्वयं को अच्छी तरह से जान लो
ये दुआएं दे रहा है आज दिल
कमल जैसे जगत में तुम जाओ खिल

सोमवार, जुलाई 9

पुत्र के जन्मदिन पर




 माँ का उपहार 
पिता ने कहा कुछ दिन पहले
जन्मदिन आ रहा है तुम्हारा, क्या भेजें !
परमात्मा ने दिया है सब कुछ तुम्हें
सोचा, भेजते हैं थोड़ी सी दुआएं
दुआएं.. जो दूर तक साथ जाती हैं
जब घना हो अँधेरा तब उम्मीद का दीप जलाती हैं
इसी तरह खिला रहे मृदु मुस्कान से चेहरा तुम्हारा
हर कदम पर बनो एक-दूजे का सहारा
मित्रों संग खेलो-खिलखिलाओ
गमलों में कुछ और गुलाब उगाओ
इस शुभ दिन पर थोड़ा ध्यान भी करो
किसी जरूरत मंद को जाकर कुछ दान भी करो
सुबह उठकर शुक्रिया करना हर उस शख्स का
जिसकी वजह से आज तुम्हें यह मुकाम है मिला
पूर्वजों को याद करना, अपनों से आशीष लेना
मित्रों संग भोज कर, नव सृजन का स्वप्न देखना


शुक्रवार, मई 12

परम पूज्य सदगुरू के जन्मदिन पर



परम पूज्य सदगुरू के जन्मदिन पर 


खिलता कमल, पूनम का चाँद
अरुणिम सूर्य, नीला आकाश,
मंद समीर प्रातः का जैसे
सद्गगुरु बहता हुआ प्रकाश !

नयन बोलते, स्मित झरता है
मधुरिम आभा सँग-सँग डोले,
प्रश्न सभी गिर जाते मन के
वाणी राज जगत के खोले !

सुख-दुःख की सीमा दिखलाई
छोड़ दिया ले जा अनंत में,
उत्सव है जीवन का हर पल  
वही विराजे अंतरतम में !

सारे जग का मीत बना है
करुणा और ज्ञान का सागर,
उर कोमल, संकल्प लौह सा
प्रीत भरी ज्यों छलके गागर !

दुनिया के कोने-कोने में
 पहुँचाया संदेश प्रेम का,
द्रवित हुए पाहन से उर भी
दृष्टि मिली सत्य तभी प्रकटा !

जन्मदिवस पर गाता हर दिल
बार-बार आये यह शुभ दिन,
रहें सुवासित पाकर अंतर
ज्ञान पुष्प जो झरते निशदिन !




शुक्रवार, मई 13

गुरूजी के जन्मदिन पर


गुरूजी के जन्मदिन पर



शब्द नहीं ऐसे हैं जग में
जो तेरी महिमा गा पायें,
भाव अगर गहरे भी हों तो
व्यक्त हृदय कैसे कर पायें !  

'तू' क्या है यह तुम्हीं जानते
अथवा तो ऊपरवाला ही,
क्या कहती मुस्कान अधर की
जाने कोई मतवाला ही !

जाने कितने राज छिपाए
मंद-मंद मुस्कातीं ऑंखें,
अन्तरिक्ष में उड़ता फिरता
मन मनहर लगा नव पांखें !

सबके कष्ट हरे जाएँ बस
यही बसा दिल में तेरे है,
सबके अधर सदा मुस्काएं
गीत यही तूने टेरे हैं !

लाखों जीवन पोषित होते
करुणा सहज भिगोती मन को,
हाथ हजारों श्रम करते हैं
सहज प्रेरणा देती उनको !

तेरा आना सफल हुआ है
भारत का मस्तक दमकाया,
नेहज्योति जला कर जग में
 खुशियों का उजास फैलाया !




सोमवार, नवंबर 30

जन्मदिन की शुभकामनाएँ

जन्मदिन की शुभकामनाएँ

नयी भोर आयी जीवन में
लेकर एक सन्देश नया,  
जन्मदिन यह कहने आया
बीता जो वह समय गया !  

हर क्षण यहाँ लिये आता  
एक ऊर्जा का उपहार,
नयन मिलाये जीवन से जो
पा जाता अनुपम आधार !

आगे ही आगे बढ़ना है
नहीं दूसरा कोई मार्ग,
पथ दिखलाया सदा ही जिसने  
भीतर वह जलती है आग !

शुभ ही केवल घट सकता
रब की इस पावन सृष्टि में,
जन्म दिया जिसने उसके
सुन्दरतम जीवन घट में ! 

मंगलवार, सितंबर 29

लताजी के जन्मदिन पर

लता मंगेशकर- भारत की महान गायिका

स्वर सम्राज्ञी, कोकिल कंठा
शान विश्व की, आन देश की 
भारत रत्ना लता महान 
सर्वोत्तम पहचान देश की !

हर्षित हुई इंदौर की भूमि
सन २९ में जन्म लिया, 
दीनानाथ, शुद्ध मती की 
सबसे बड़ी दुलारी कन्या !

हृदय नाथ की प्यारी दीदी 
बहनें आशा, उषा, मीना 
नन्हीं उमर में सीखा अभिनय 
सीखा सुर, लय, ताल में गाना I

अमान अली खां हों या अमानत 
लता सदा थीं गुणवती शिष्या
तेरह वर्ष की हुईं अभी थीं 
सर से उठा पिता का साया !

परिवार का बोझ आ पड़ा 
करना पड़ा फिल्मों में काज 
धीरे –धीरे गायन में वह 
सिद्ध हुईं बनी सरताज I

गीत हजारों तब से गाये 
जाने कितने दिल धड़काए 
जन्म दिवस पर लें बधाई 
बार अनेकों यह दिन आये !

मंगलवार, मई 12

गुरूजी के जन्मदिन पर

गुरूजी के जन्मदिन पर

मुक्तिबोध कराते पल में
करुणा सागर ज्ञान का दरिया,
ऐसे थामे रखते पल-पल  
प्रेम लुटाते ज्यों सांवरिया !

स्वीकारें हर परिस्थिति को
किन्तु डिगें न अपने पथ से,
वर्तमान में रहकर प्रतिक्षण
वरतें स्वयं सम सारे जग से !

नित नूतन कई ढंग से
बोध कराते निज स्वरूप का,
भाव भंगिमा अनुपम उनकी
छलकाते जाम मस्ती का !

सेवा, सत्संग और साधना
स्वाध्याय का दें संदेश,
जीवन धन्य बनेगा कैसे
सिखलाते हैं देश-विदेश !

सद्गुरु का होना सूर्य सम
अंधकार अंतर का मिटता,
चाँद पूर्णिमा का अथवा हो
सौम्य भाव इक उर में जगता !

शुभता और सत्यता बाँटें
हर लेते हर पीड़ा मन की,
सहज समाधि में ले जाते
अद्भुत है क्रीड़ा गुरू जन की !

दिवस अवतरण का पावन है
बरसों पूर्व धरा पर आये,
शुद्ध बुद्ध चेतना लेकर
भारत भूमि पर मुस्काए !

शिशु काल से ही भक्ति का
बीज अंकुरित था अंतर में,
लाखों जन की पीड़ा हर लूँ
यह अंकित था कोमल उर में !

की तपस्या बरसों इस हित
सहज ध्यान में बैठे रहते,
जग को क्या अनमोल भेंट दूँ
इस धुन में ही खोये रहते !

स्वयं कुछ पाना शेष नहीं था
तृप्त हुआ था कण-कण प्रभु से,
चिन्मय रूप गुरू का दमके
पोर पोर पगा था रस से !

क्रिया की कुंजी बांटी सबको
राज दिया भीतर जाने का,
छुपा हुआ जो प्रेम हृदय में
मार्ग दिया उसको पाने का !

सद्गुरु को शत शत प्रणाम हैं
कृपा बरसती है नयनों से,
शब्द अल्प हैं क्या कह सकते
तृप्ति झरती है बयनों से !

लाख जन्म लेकर भी शायद
नहीं उऋण हो सकता साधक,
गुरू की एक दृष्टि ही जिसको
करती पावन जैसे पावक !

एक समन्दर है शांति का
एक बगीचा ज्यों पुष्पों का,
एक अनंत गगन सम विस्तृत
मौन एक पसरा मीलों का !

गुरु की गाथा कही न जाये
शब्दों में सामर्थ्य कहाँ है,
स्वर्गिक ज्योति ज्यों ज्योत्स्ना
बिखरी उसके चरण जहाँ हैं !

सिर पर हाथ धरे जिसके वह
जन्मों का फल पल में पाता,
एक वचन भी अपना ले जो
जीने का सम्बल पा जाता  !

महिमा उसकी है अपार
बिन पूछे ही उत्तर देता,
प्रश्न कहीं सब खो जाते
अन्तर्यामी सद्गुरु होता !

दूर रहें या निकट गुरू के
काल-देश से है अतीत वह,
क्षण भर में ही मिलन घट गया
गूंज रहा जो पुण्य गीत वह !

पावन हिम शिखरों सा लगता
शक्ति अरूप आनंद स्रोत है,
नाद गूंजता या कण-कण में
सदा प्रज्वलित अखंड ज्योत है !

वही शब्द है अर्थ भी वही
भाव जगाता दूजा कौन,
उसकी महिमा खुद ही जाने
वाणी हो जाती है मौन !

सरिता कल-कल ज्यों बहती है
उससे सहज झरे है प्रीत,
डाली से सुवास ज्यों फैले
उससे उगता है संगीत !

धरती सम वह धारे भीतर
माणिक-मोती सम भंडारे,
बहे अनिल सा कोने कोने
सारे जग को पल पल तारे !


बुधवार, नवंबर 5

जन्मदिन पर

कल पिता का जन्मदिन है


उम्र हुई, तन करे शिकायत
कभी-कभी मन भी हो आहत,
लेकिन आत्मज्योति प्रज्वलित है
दिल में बसी ईश की चाहत !

अब भी दिनचर्या नियमित है
ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाते,
पीड़ा हँस कर सहना आता
औरों को भी राह दिखाते !

प्रभु भजन से सुबह सँवरती
दिन भर ही अध्ययन चलता है,
सुर संगीत का साथ पुराना
जिससे संध्या काल ढलता है !

संतानों को स्नेह बांटते 
नाती-पोती संग मुस्काते,
निज नाम सार्थक करके
सदा सहाय बन कर रहते !

नानक ने जो राह दिखाई
सदा उसी पर चले हैं आप,
जन्मदिन पर लें बधाई
हमें आप पर है अति नाज !



शुक्रवार, जनवरी 24

उन सब बालिकाओं के लिए जिनका पहला जन्मदिन आने वाला है

पहले जन्मदिन पर


ओ नन्ही मुन्नी गुड़िया !
ठीक बरस भर पहले तूने
मध्य अपनों के आँखें खोलीं
दरस दिया !

पतले नाजुक अंग
लालिमा युक्त, परी सी हल्की
स्वच्छ नयन थे, कोमल केश
स्निग्ध स्पर्श, अनूठा वेश
लेकिन तब भी नाना-नानी 
दादा-दादी को एक अनोखा
स्नेह दिया !

कभी जगाया घर भर को
कभी हंसाया भोलेपन से
इतना सा मन, छोटा सा तन
पर तूने अस्त्तित्व से अपने
सारे घर का कोना-कोना
भर दिया !

अब तू नन्हे कदम बढ़ाती
 तुतलाहट से कभी लुभाती
न जाने अंतर में कितनी
साध लिए जग में तू आयी
हों स्वप्न साकार, माँ-पापा ने जो
बुना किया !

पापा कहकर जिसे बुलाती
वह तेरे बचपन के साथी
रोता तुझे देख न पाते
झट बाँहों में ले झुलाते
पल-पल तेरे नाज उठाते
दुनिया से परिचय करवाते
दिन भर की थकन को नहीं कभी
जाहिर किया !

अभी बोल मुँह से न फूटे
 पर जो तुझसे बातें करती थी
तू जिसकी धड़कन से परिचित
एक-दूजे को खूब समझती
उस माँ की आँखों का तारा
तुझसे ही जिसका जग सारा
मुस्कानों को देख तेरी भर जाता
उसका हिया !

चाचा, बुआ, फूफा, मामा
मामी, मासी, मौसा सबके
दिल में रहती खुशियाँ देती
दादाजी को तूने ही तो
कविता करना सिखा दिया 
है सभी की लाडली तू
ओ दुलारी बिटिया !