बस इतना सा ही सरमाया
गीत अनकहे, उश्ना उर की
बस इतना सा ही सरमाया !
कांधे पर जीवन हल रखकर
धरती पर फिर कदम बढाये
कुछ शब्दों के बीज गिराए
उपवन गीतों से महकाए !
प्रीत अदेखी, याद उसी की
बस इतना सा ही सरमाया !
कदमों से धरती जब नापी
अंतरिक्ष में जा पहुँचा मन
कुछ तारों के हार पिरोये
डोले चन्द्रमाओं सँग-सँग !
कभी स्मृति, कभी कल्पना
बस इतना सा ही सरमाया !
अनिता निहालानी
७ मई २०११