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शनिवार, मई 7

बस इतना सा ही सरमाया


बस इतना सा ही सरमाया


गीत अनकहे, उश्ना उर की
बस इतना सा ही सरमाया !

कांधे पर जीवन हल रखकर
धरती पर फिर कदम बढाये
कुछ शब्दों के बीज गिराए
उपवन गीतों से महकाए !

प्रीत अदेखी, याद उसी की
बस इतना सा ही सरमाया !

कदमों से धरती जब नापी
अंतरिक्ष में जा पहुँचा मन
कुछ तारों के हार पिरोये
डोले चन्द्रमाओं सँग-सँग !

कभी स्मृति, कभी कल्पना
बस इतना सा ही सरमाया !


अनिता निहालानी
७ मई २०११

सोमवार, नवंबर 22

आत्मा का गीत

आत्मा का गीत

तन के भीतर, मन मंदिर में
मन मंदिर के गहन कक्ष में,
गहन कक्ष के बंद द्वार हैं
बंद द्वार के पीछे सोयी I

कोमल, सुंदर, विमल आत्मा !

हौले से मन मंदिर जाना
गहन कक्ष के द्वारे थमना,
बंद कपाटों को खुलवाना
बड़े स्नेह से उसे जगाना I

वहीं मिलेगी मधुर आत्मा !

मिलते ही हर दुःख हर लेगी
सौगातों से उर भर देगी,
सारे जग का प्यार समेटे
मन में या नयन में रहेगी I

जन्मों की है मीत आत्मा !

अनिता निहालानी
२२ नवम्बर२०१०