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शुक्रवार, दिसंबर 27

नया वर्ष

नया वर्ष 


चार दिन है शेष हैं 

फिर वर्ष यह खो जाएगा 

स्मृति बनाकर इतिहास के पन्नों में 

सहेज लिया जाएगा 

कितने सुख-दुख 

अपने दामन में छिपाये 

कितनी बार रोये मन 

कितना मुस्कुराए 

धरती ने सही कितने ही दंश 

गगन पर घन कितने छाये 

देशों के भाग्य बने, टूटे 

 मौसम ने कितने

ख़ुद में बदलाव लाए 

जीवन यूँही चलता जाए 

हर नया वर्ष कुछ पल थम 

ख़ुद को देखने का

 अवसर दे जाये 

व्यक्ति, समाज और राष्ट्र 

सभी को अवलोकन कराए  

जो बीत गया उससे देकर सीख 

नया वर्ष आगे ले जाये ! 


बुधवार, जनवरी 3

कुसुमों में सुगंध के जैसा


कुसुमों में सुगंध के जैसा

राग नया हो ताल नयी हो 
कदमों में झंकार नयी हो, 
रुनझुन रिमझिम भी पायल की 
उर में  करुण पुकार नयी हो !

अभी जहाँ विश्राम मिला है  
बसे हैं उससे आगे राम, 
क्षितिजों तक उड़ान भर ले जो 
 हृदय को पंख लगें अभिराम !

अतल मौन से जो उपजा हो 
सृजित वही हो मधुर संवाद,
उथले-उथले घाट नहीं अब 
गहराई में पहुंचे याद !

नया ढंग अंदाज नया हो 
खुल जाएँ जो बंद हैं  द्वार ,
नये वर्ष में गीत नया हो
बरसे बरबस सरस उपहार !

अंजुरी भर-भर बहुत पी लिया  
अमृत घट वैसा का वैसा,
अब अंतर में भरना होगा 
कुसुमों में सुगंध के जैसा !

शनिवार, दिसंबर 30

बीत गया एक और वसंत

बीत गया एक और वसंत

जाते हुए बरस का हर पल 

याद दिलाता सा लगता है,

बीत गया एक और वसंत

सपना ज्यों का त्यों पलता है !


दस्तक दे नव भोर जतन हो 

स्वप्न अधूरा मत रह जाये,   

नये वर्ष में हर कोई मिल 

 जीवन का गीत गुनगुनाये !


 गली का हर कोना स्वच्छ हो 

गौरैया को दाना डालें,

 ख्वाब अधूरा जो वर्षों का 

 अंजाम पर उसे पहुँचायें  !


दरियाओं को और न पाटें 

जहर फिजाओं में न मिलायें, 

सुख की नींद मिले  माँओं को 

बेटियों  को कभी  न जलायें !


ख़ुद को पहचाने  हर बच्चा 

 तालीम का सूरज उगायें, 

दम न तोड़े  भटक कर यौवन

 सब अपनी भूमिका निभायें  !


छंट जाएँ आतंक की धुँध  

हर जुल्मो सितम से छुड़ायें,

घर से दूर हुए नौनिहाल 

बिछुड़े हुओं को पुन: मिलायें  !


 बेघर किया जिन्हें वन काटे

 स्वार्थ हेतु न उन्हें मरवायें, 

 छुड़ा   क़ैद  से मासूमों को

हक सुखद जीवन का दिलायें !


नया वर्ष दस्तक दे, उससे 

पहले कुछ नव रस्म बना लें,

छूट गये जो साथी पीछे

निज संग चलने को मना लें !


गुरुवार, दिसंबर 21

भारत का प्रकाश फैलेगा

 भारत का प्रकाश फैलेगा 

युद्धों की ज्वाला में जलता 

विश्व छिपा है अंधकार में,  

 भारत का प्रकाश फैलेगा 

शांति सिखाता हर विचार में ! 


पर्यावरण की धुन जिन्हें है 

राकेट-गोले बम दागते, 

घायल करके धरती का दिल 

मासूमों का रक्त बहाते ! 


 आश्रय में रहे प्रकृति माँ के

मानव का विकास तब संभव,  

बहे अनंत कृपा अनंत की 

जिसकी कृति यह अति सुंदर भव !


 नये वर्ष में जागे विवेक

विध्वंस न हो नव सृजन घटे,

हो उत्कर्ष सदा मूल्यों का 

साहचर्य का उल्लास बढ़े !


मंगलवार, जनवरी 3

नया वर्ष - नए विकल्पों का घोष


नया वर्ष - नए विकल्पों का घोष 

जाते हुए वर्ष के अंतिम दिन और नए वर्ष के प्रथम दिन को प्रकृति के सान्निध्य में बिताने की परंपरा कब और कैसे आरम्भ हो गयी, यह तो याद नहीं पर पतिदेव की सेवा निवृत्ति से पूर्व की यह रीति कोरोना का एक वर्ष छोड़ दें तो पिछले तीन वर्षों से बखूबी चल रही है। इस वर्ष भी तीन महीने पहले ही पुत्र व पुत्रवधू ने ईको नेटिव विलेज नामक एक रिज़ॉर्ट में दो कमरे आरक्षित करवा दिए थे। अतः २०२२ का अंतिम दिवस और २०२३ का प्रथम दिवस पंछियों, वृक्षों और सूर्यास्त व सूर्योदय निहारते हुए बिताया। बंगलूरू की भीड़भाड़ से दूर गाँव के निकट खेतों-खलिहानों के मध्य दूर तक फैले खुले स्थान पर यह स्थान है। दूर से देखने तो पेड़ों से घिरा है, पर निकट जाकर देखने पर ज्ञात होता है कि अपनी उत्तम वास्तुकला के साथ ​​​​यह आवास शांत वातावरण में स्थित है और सुकून भरे कुछ पल बिताने के लिए एक सुरम्य गांव की पृष्ठभूमि पर बनाया गया है।घूमता हुआ चाक तो पहले कई बार देखा था पर पहली बार एक कुम्हार के सहयोग से चाक चलाने का अवसर मिला, हमने मिट्टी के दो छोटे पात्र बनाए। मिट्टी का कोमल स्पर्श अनोखा था, तेज़ी से घूमते हुए चाक पर अनगढ़ मिट्टी को भीतर व बाहर से सहेजते हुए आकार देना वाक़ई एक सुंदर अनुभव था। इसके बाद बचपन में खेले हुए अनेक खेलों की बारी थी, जिसमें शामिल थे, झूले, लट्टू घुमाना, लकड़ी की सहायता से टायर घुमाना, गुलेल से टंगी हुई टिन की बोतलों पर निशाना, पतंग उड़ाना, लगूरी, बास्केट बॉल, कैरम और भी कई खेल, जिन्हें बच्चे-बड़े मिल कर खेल रहे थे। जो काम वर्षों से नहीं किए होंगे, उन्हें  करके सहज आनंद मिल रहा था, वास्तव में आनंद तो भीतर है ही, उसे व्यक्त होने का अवसर मिल रहा था, वरना घर-बाहर के रोज़मर्रा के कामों में बड़े और पढ़ाई के बोझ तले दबे बच्चे अपने भीतर के उस आनंद से मिल ही नहीं पाते जो उन्हें इन सरल कृत्यों को कर के मिल रहा था। इस ख़ुशी का शायद एक कारण और भी हो सकता है, जीवन में नयापन उत्साह से भर देता है, तो ये सारे खेल जिन्हें आज की पीढ़ी भूल ही गयी है, उसी नवीनता का अनुभव करा रहे थे। जैसे परमात्मा नित नया सृजन करता ही जाता है, वह थकता ही नहीं। हमारे भीतर भी उसी का अंश आत्मा रूप में मौजूद है जो सदा नवीनता का अनुभव करना चाहता है। संभवतः इसीलिए दुनिया भर में लोग नया साल मनाते हैं। 

प्रकृति प्रेमियों के लिए इससे अच्छा क्या होगा कि वर्ष की अंतिम रात्रि को स्वच्छ आकाश में तारों की चमक और चंद्रमा की दमक निहारते हुए बिताया जाए। भोर में पंछियों कि कलरव से नींद खुले और उगते व अस्त होते सूर्यदेव को प्रणाम करने का अवसर मिले। नये  वर्ष का विशेष रात्रिभोज, संगीत, प्रकाश और साज-सज्जा तो सभी के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बना ही हुआ था। यहाँ दो दर्जन से ज़्यादा कमरे हैं और सभी भरे हुए थे। बच्चे, युवा, अधेड़ और वृद्ध सभी आयुवर्ग के लोग आए हुए थे, जिनमें से अधिकतर आपस में शायद पहली और अंतिम बार मिले थे, पर एक आत्मीयता का सहज भाव जग जाना स्वाभाविक था क्योंकि सभी एक ही उद्देश्य के लिए आए थे, अपने जीवन की इस संध्या को यादगार बनाने !

शाम होते ही भोज की तैयारी शुरू हो गयी थी। प्रकाश की झालरें, संगीत और स्वादिष्ट भोजन की सुगंध सबको कार्यक्रम स्थल पर ली आयी। कुछ मेहमानों ने गीत गाए, कुछ बच्चों ने नृत्य किए और जैसे ही घड़ी ने बारह बजाए, प्रांगण पटाखों से गूंज उठा।

अगले दिन सुबह उठे तो विभिन्न पक्षियों की मधुर आवाज़ें सारे वातावरण में गूँज रही थीं। अभी हल्का अंधेरा था, पर रिज़ोर्ट से बाहर निकल कर बाँए कच्चे रास्ते पर चलना आरंभ किया तो धीरे-धीरे प्रकाश फैलने लगा था। आसपास के खेतों व पगडंडी पर श्वेत कोहरा छाया था, पथ के अंत तक हम चलते गए, रास्ते में कुछ फूलों के पेड़ थे। पगडंडी की समाप्ति पर किसी का घर था, या कोई गेस्ट हाउस। वापसी में बाँयी तरफ़ श्वेत कोहरे को भेदती हुई हल्की सी लाल आभा की झलक दिखी; और देखते-देखते नारंगी रंग का सूर्य का गोला श्वेत पृष्ठभूमि पर देदीप्यमान हो उठा। हमने कुछ तस्वीरें उतारीं और कुदरत को निहारते वापस लौट आए। प्रातःराश  के बाद वहाँ से लौटने से पूर्व अंतिम बार पूरे अहाते का एक चक्कर लगाया। कमल कुंड में कलियाँ खिलने लगी थीं। टमाटर, लौकी, फलियाँ, बैंगन, मिर्च, पपीते के पौधे और पेड़ देखे। यहाँ कुछ गाएँ और बत्तखें भी पाली हुई हैं। एक बैल गाड़ी भी खड़ी थी। एक तरह से गाँव का पूरा वातावरण बनाया गया है। 

शहर लौटकर अवतार २ देखने का कार्यक्रम भी पहले से ही तय था। इस फ़िल्म में समुंदर के नीचे की दुनिया का अद्भुत चित्रण किया गया है। पानी की लहरों के साथ नीचे उतरते -तैरते हुए काल्पनिक दुनिया के पात्र वहाँ के जीवों और वनस्पतियों से कैसा आत्मीय संबंध जोड़ लेते हैं, यह देखते ही बनता है। जीवन इतना अद्भुत हो सकता है, एक ओर इसकी कल्पना जहाँ चेतना को ध्यान की ओर ले जाती है, वहीं दूसरी ओर बन्दूकों और बारूद के विस्फोट से विनाश की लीला मानव की लिप्सा के प्रति सजग भी करती है। जेक सली के अनोखे परिवार और विशालकाय मछलियों के दृश्यों को मन में अंकित किए जब हम हॉल से बाहर आए तो सड़क पर ट्रैफ़िक कुछ ज़्यादा ही था। कुशलता से गाड़ी को भीड़ से निकाल कर घर तक पहुँच कर घड़ी देखी तो रात्रि के आठ बज चुके थे। बच्चों ने खाना पहले ही ऑर्डर कर दिया था, जो पहुँच चुका था। इस तरह नए वर्ष का पहला दिन अविस्मरणीय बन गया है और आने वाले पूरे वर्ष के लिए प्रेरणा का एक स्रोत भी; अर्थात अपने रोज़मर्रा के कामों में से कुछ समय निकाल कर  पाँच तत्वों के साथ कुछ समय बिताना, प्रकृति के साथ आत्मीय संबंध अनुभव करना और परमात्मा के द्वारा मिले परिवार के साथ सहज प्रेम के वरदान को कृतज्ञता के साथ ग्रहण करना !

शुक्रवार, दिसंबर 30

नए तराने गाएँ मिलकर

नए तराने गाएँ मिलकर 


नए वर्ष में आओ ! साथी  

 नए-नए हो जाएँ खिलकर,

नया सृजन हो, नए गीत कुछ 

नए तराने गाएँ मिलकर  !


नए विचारों से महकाएँ, 

आंगन अपने बासी  मन का

नए भाव  से भरें हृदय को, 

दामन ख़ुशियों से  जीवन का !


नई सोच हो, हृदय  मुक्त हो,

 सभी पूर्वाग्रह से अब तो,

नई कोंपलें फूटें उर में, 

नए रास्ते खोजें अब तो !


नए शब्द हों, नए इरादे,

 नया-नया हो क्रम जीवन का,

नई पुलक हो, नव उमंग हो, 

नया राग हो नादाँ मन का !


नए साल में, नए ताल में,

 नया-नया सुर वादन छेड़ें,

नई थाप हो, नई धुनें हों, 

नूतन अंतर प्रीत उलेड़ें !


अब तक सच माना था जिसको,

 परखें उस अपने जीवन को,

जो असत्य हो, झट से तज दें, 

झिझके नहीं हृदय  पल भर को !


गुरुवार, दिसंबर 30

नए वर्ष में नए स्वप्न हों

नए वर्ष में नए स्वप्न हों 


उजाला ही उजाला हर सूँ 

हम आँखें मूँदे बैठे है, 

प्रकृति-पुरुष का नर्तन चलता 

हम अँधियारे में बैठे हैं !


शिव का तांडव लास्य उमा का 

दोनों  साथ-साथ चलते हैं,  

भूकंप कहीं तूफां भीषण 

कहीं सुगंधित वन खिलते हैं !


यह सृष्टि बनी  है क्रीडाँगन 

दिव्य चेतना शुभ मेधा की, 

नित्य नवीन रहस्य खुल रहे 

है अनंत प्रतिभा दोनों की !


हो जाए लय मन इस क्रम में 

श्वास-श्वास यह भरे प्रेम से, 

यही ऊर्जा बिखर चमन में 

भाव तरंग, वाणी, कृत्य से !


नए वर्ष में नए स्वप्न हों 

नव उमंग कुछ नया हर्ष हो, 

छोड़ दिया जिसको  भी पथ में 

साथ उसे लें यह विमर्श हो !


बुधवार, जनवरी 9

नया वर्ष


नया वर्ष


समय के अनंत प्रवाह में...
गुजर जाना एक वर्ष का, मानो
सागर में एक लहर का उठना
और खो जाना !
और इस दिन
लाखों की आतिशबाजी जलाना
उस दुनिया में ?
जहाँ लाखों घरों में अँधेरा है
एक दिये के लिए भी नहीं है तेल
नया वर्ष तो तब भी आएगा,
जब हम कान फोड़ पटाखे नहीं जलायेंगे
नहीं खोएंगे होश आधी रात को सडकों पर
अजीब रिवाज जन्म ले रहे हैं शहर की हवा में
नये साल के पहले दिन
इच्छाओं की सूची बहुत लम्बी होती है मनों में
तभी तो मन्दिरों के बाहर पंक्तियाँ भी
दोपहर तक खत्म होने को नहीं आतीं !

मंगलवार, जनवरी 8

नये वर्ष में




नये वर्ष में

यूँ तो हर घड़ी नयी है
हर पल घटता है पहली बार
हर क्षण जन्मता है समय की अनंत कोख में
प्रथम और अंतिम बार एक साथ
दोहराया नहीं जाता सृष्टि में कुछ भी
क्योंकि अनंत है सामर्थ्य इसका
नहीं आएगा बीता वर्ष दोबारा
इस महायज्ञ में होने शामिल
फिर भी हर आगत को नूतन गढ़ना है
यदि विकास के सोपान पर चढ़ना है
और अंतर में गहरे बढ़ना है
नया अंदाज हो बात को कहने का
सीखें गुर दरिया सा सदा बहने का !


सोमवार, दिसंबर 31

नए साल की दुआ

बीता बरस जरूर है
बीत न जाये प्यार,
आने वाले साल में
खुशियाँ मिलें हजार ।

जंग लगे न सोच पर
बना रहे उल्लास,
हर पल यहाँ अमोल है
जो भी अपने पास ।

श्वासों में विश्वास हो
उर में सुर संगीत,
कदमों में थिरकन भरी
कहता जीवन गीत ।

सुख की चादर ओढ़ कर
दुख न आये द्वार ,
पलकों के अश्रु बनें
अधरों पर मुस्कान ।

शनिवार, दिसंबर 31

नये वर्ष में गीत नया हो


नये वर्ष में गीत नया हो 


राग नया हो ताल नयी हो 
कदमों में झंकार नयी हो, 
रुनझुन रिमझिम भी पायल की 
उर में  करुण पुकार नयी हो !

अभी जहाँ पाया विश्राम 
 बसते उससे आगे राम, 
क्षितिजों तक उड़ान भर ले जो 
पंख लगें उर को अभिराम !

अतल मौन से जो उपजा हो 
सृजें वही मधुर संवाद,
उथले-उथले घाट नहीं अब 
गहराई में पहुंचे याद !

नया ढंग अंदाज नया हो 
खुल जाएँ सिमसिम से द्वार 
नये वर्ष में गीत नया हो
बहता वह बनकर उपहार !

अंजुरी भर-भर बहुत पी लिया  
अमृत घट वैसा का वैसा,
अब अंतर में भरना होगा 
दर्पण में सूरज के जैसा !




गुरुवार, दिसंबर 29

नया वर्ष भर झोली आया


नया वर्ष भर झोली आया 

मन  निर्भार हुआ जाता है 

अंतहीन है यह विस्तार,
हंसा चला उड़ान भर रहा 
खुला हुआ अनंत का द्वार !

मन श्रृंगार हुआ जाता है 

नया-नया ज्यों फूल खिला हो,
पंख लगे सुरभि गा आयी 
हर तितली को संदेश मिला हो !

मन उपहार हुआ जाता है 

बीत गया जो भी जाने दें,
नया वर्ष भर झोली आया 
  खुलने दें पट नव क्षितिजों के !  

मन मनुहार हुआ जाता है 

रूठ गये जो उन्हें मना लें,
सांझी है यह धरा सभी की 
झाँक नयन संग नगमे गा लें ! 

मन बलिहार हुआ जाता है 

पंछी के सुर, नदिया का जल,
पलकों की कोरें लख छलकें 
हरा-भरा सा भू का आंचल  !




शुक्रवार, दिसंबर 9

नए इरादे फिर करने हैं



नए इरादे फिर करने हैं 

कुछ हफ्तों की उम्र शेष है
 नए वर्ष के दिन चढ़ने हैं,
अभी समय है पूरे कर लें
नए इरादे फिर करने हैं  !

फिर से होगा धूम-धड़ाका
नृत्य, पार्टी, आधी रात,
लेन-देन शुभेच्छा का
कट जाएगी अंतिम रात !

जीवन फिर से करवट लेगा
नई मंजिलें राह देखतीं,
उससे पहले जरा निहारें
रह गयी है जो बात अधूरी !







मंगलवार, जनवरी 5

नये वर्ष में

नये वर्ष में

...क्यों न प्रवेश करें नये आयामों में
पुराने वक्तों को उतार फेंके
ज्यों केंचुल उतार देता है सर्प !
जो किया है अब तक, अगर वही दोहराया
तो क्या खाक नया साल मनाया !
उतार फेंके चश्मा अपनी आँखों से
दुनिया को नये ढंग से निहारें,
क्या चाहता है वह खुदा हमसे
दिल से पूछें, उसे शिद्दत से पुकारें !  
चुभते हैं जो सवाल भीतर
बैठ आराम से उनके हल खोजें,
सहते हैं जो ख्वाब नयनों में
उन्हें साकार करने के नये अंदाज खोजें !
आदमी होकर आये थे जहाँ में
आदमियत की परिभाषा सीखें,
 दी हैं इस कुदरत ने हजार नेमतें
उनका शुक्रगुजार होना सीखें !
नया वर्ष क्या यही कहने
नहीं चला आता बार-बार,
न दोहराएँ वे भूलें
जो की थीं पिछली बार !


बुधवार, जनवरी 1

नया वर्ष दस्तक देता है

नया वर्ष दस्तक देता है


धरती ने की पूर्ण सूर्य की, एक परिक्रमा देखो और
बीत गयीं कुछ अमावसें व, जगीं पूर्णिमाओं की भोर !

पुनः ली करवट ऋतु चक्र ने, सहज पुकारे है जीवन
हुई शोख रंगत फूलों की, सुन भ्रमरों की बढ़ती गुंजन !

अनल गगन की नव रश्मि से, हम भी तो भीतर सुलगा लें
भरकर भीतर नई ऊष्मा, कुहरा मन का छंट जाने दें !

करें पूर्ण जो रहा अधूरा, जो छूटे संग उन्हें ले लें
धूल सा झाड़ें जो अनचाहा, तज अतीत हल्के हो लें !

उम्मीदों की धूप जगाएं, ख्वाब भरें सूनी आँखों में
रब ने दी जिन्दगी जिनको, न्याय मांगते पर राहों में !

प्रेम जग दिलों में उनके, लोभ, स्वार्थ जहाँ है भारी
नये वर्ष में यही प्रार्थना, कोई न भूखा, न लाचारी !

नहीं घुले जहर मिट्टी में, हों निर्मल नदियों के जल
शुद्ध हवाएं, कटें न जंगल, तंग न हो किसी का दिल !

बेवजह गमजदा आदमी, जागे वह खुद को पहचाने
नहीं गुलामी करे किसी की, आजादी का सुख भी जाने !

एक नयी आस्था भीतर, जीवन का आधार बने
जीत सत्य की ही होगी, पुनः यही हुंकार उठे !

भय से नहीं प्रेम से जोड़ें, शुभ संस्कृतियाँ पुनः खिलें
नया वर्ष दस्तक देता है, खुशियों की सौगात मिले !