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मंगलवार, मार्च 28

रामनवमी के पावन पर्व पर

रामनवमी के पावन पर्व पर 


त्रेता युग में प्रकट हुए थे 

 मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम,  

किन्तु आज भी अति ही पावन 

शुभ परम सात्विक जिनका नाम !


खुद अनंत को सांत बनाया 

अनुपम अवतार लिया विष्णु ने, 

किंतु रहे राम नहीं सीमित

भारत भू की सीमाओं में !


राम नाम के मधुर जाप ने 

सारे जग को गुंजाया है , 

हरि अनंत  कथा भी अनंता 

हर युग ने जिसे सुनाया है !


जन्मस्थल पर बनता मन्दिर 

दिव्य स्वप्न अब पूर्ण हुआ है,  

राम राज्य फिर लौटा लाएं   

 बाट देखता वर्तमान यह !


 शुभ मूल्यों की हो स्थापना

 राजाराम चले थे जिन पर,

दुनिया को नव मार्ग दिखाया  

सुत आदर्श, मित्र भाई बन  !


माँ सीता का नाम सदा ही  

वीर राम से आगे लगता,  

सहे कई अपवाद भले ही 

सिया-राम ही जग यह जपता !


बुधवार, अप्रैल 21

राम की छवियाँ जो हर मन में बसी हैं

 राम की छवियाँ जो हर मन में बसी हैं 

पैरों में पैजनियां पहने 

घुटनों-घुटनों चलते राम, 

माँ हाथों में लिए कटोरी

आगे आगे दौड़ते  राम !


गुरुकुल में आंगन बुहारते 

गुरू चरणों में झुकते राम, 

भाइयों व मित्रों को पहले 

निज हाथों से खिलाते राम !


ताड़का सुबाहु विनाश किया 

 यज्ञ की रक्षा करते राम, 

शिव का धनुष सहज ही तोडा 

जनक सुता को वरते राम !


जन-जन के दुःख दर्द को सुनें 

अयोध्या के दुलारे राम, 

राजा उन्हें बनाना चाहें  

पिता नयनों के तारे राम !


माँ की चाहना पूरी करने  

जंगल-जंगल घूमते राम, 

सीता की हर ख़ुशी चाहते 

हिरन के पीछे जाते राम !


जटायु को गोदी में लेकर 

आँसूं बहाते व्याकुल राम, 

खग, मृग, वृक्षों, बेल लता से 

प्रिया का पता पूछते राम !


शबरी के जूठे बेरों को 

बहुत स्वाद ले खाते राम, 

हनुमान कांधों पर बैठे 

सुग्रीव मित्र बनाते राम !


छुप कर बालि को तीर चलाया 

दुष्टदलन भी करते राम, 

हनुमान को दी अंगूठी 

याद सीता को करते राम !


सागर पर एक सेतु बनाया 

शिव की पूजा करते राम, 

असुरों का विनाश कर लौटे 

पुनः अयोध्या आते राम !


सारे भूमण्डल में फैली 

रामगाथा में बसते राम, 

जन्मे चैत्र शुक्ल नवमी को

मर्यादा हर सिखाते राम !



मंगलवार, अप्रैल 12

रामनवमी के शुभ अवसर पर आप सभी को शुभकामनाएँ !

भीतर कोई जाग गया है

भीतर कोई जाग गया है
जला के कोई आग गया है,
दिव्य अनल शीतल, शुभकारी
दिप-दिप होती अंतर बारी !

जब हम नयन मूंद सो जाते
स्वप्नलोक में दौड़ लगाते,  
तब भी कोई रहे जागता   
खैर हमारी रहे मांगता !

कोई घेरे हर पल हमको
साया कोई साथ लगा है,
सदा निगाहें पीछा करतीं
अंतर में वह प्रीत पगा है !

माँ सा ध्यान रखे है सबका
फिर क्यों दिल में द्वंद्व सहें,  
सौंप सभी कुछ रहें मुक्त हो,
प्रीत में उसकी गीत कहें !

मधुरिम वंशी धुन हो जाएँ
उसकी हाँ में हाँ मिलाएं,
मुक्त गगन सा जीना सीखें
उन पलकों में रहना सीखें !

कैसा अदभुत खेल रचाया
अपनी माया में भरमाया,
मकड़ी जैसे जाल बनाती
संसार स्वयं से उपजाया !

अनिता निहालानी
१२ अप्रैल २०११