नए वर्ष में नए स्वप्न हों
उजाला ही उजाला हर सूँ
हम आँखें मूँदे बैठे है,
प्रकृति-पुरुष का नर्तन चलता
हम अँधियारे में बैठे हैं !
शिव का तांडव लास्य उमा का
दोनों साथ-साथ चलते हैं,
भूकंप कहीं तूफां भीषण
कहीं सुगंधित वन खिलते हैं !
यह सृष्टि बनी है क्रीडाँगन
दिव्य चेतना शुभ मेधा की,
नित्य नवीन रहस्य खुल रहे
है अनंत प्रतिभा दोनों की !
हो जाए लय मन इस क्रम में
श्वास-श्वास यह भरे प्रेम से,
यही ऊर्जा बिखर चमन में
भाव तरंग, वाणी, कृत्य से !
नए वर्ष में नए स्वप्न हों
नव उमंग कुछ नया हर्ष हो,
छोड़ दिया जिसको भी पथ में
साथ उसे लें यह विमर्श हो !