रात ढल चुकी है
होने को है भोर
प्रातःसमीरण में झूम रही हैं
पारिजात की डालियाँ
गा रहे हैं झींगुर अपना अंतिम राग
स्तब्ध खड़ा नीम का वृक्ष उनींदा है
अभी जागेगा
उषा की पहली किरण का स्वागत करने
घरों की खिड़कियाँ बंद हैं
सो रहे हैं अभी लोग
सुबह की मीठी नींद में
हजार मनों में चल रहे हजार स्वप्न
पंछी लेने लगे अंगड़ाई निज नीड़ों में
है अब जागने की बेला
देवता आकाश में और धरा पर प्रकृति
तत्पर हैं स्वागत करने एक दूसरे का
ब्रह्म मुहूर्त के इस क्षण में
रात्रि प्रलय के बाद
पुनः सृजित होगी सृष्टि
नव पुष्प खिलेंगे
नव निर्माण होगा पाकर नई दृष्टि !