ए जी,खायेंगे न ?
“ए जी, चलेंगे न” की जब
श्रीमती ने लगाई पांचवी बार गुहार
तो झकमार, जूता पहन, श्रीमान
हो गए सांध्य भ्रमण को तैयार !
साथ ही चलने लगा अंतर्मन में
धाराप्रवाह सोचविचार,
कुछ स्वास्थ्य पत्रिकाओं का असर
कुछ आस-पड़ोस का देख व्यवहार
रोज-रोज चढ़ने लगा है
श्रीमती जी को टहलने का बुखार !
कहाँ गए वे दिन
जब रहा करतीं थीं व्यस्त,
बनाने में पापड़ और अचार
और इत्मीनान से चाय पीते
वह पढ़ा करते थे अखबार !
आज जिसे देखो वजन घटाने में लगा है
सेहत का हो रहा है गर्म बाजार
या फिर वजन नहीं उम्र घटाना चाहते हैं लोग
बुढ़ापे में हो जाता है अक्सर
जिंदगी से दुगना प्यार !
लगा विचारों को ब्रेक,
सामने आ गयी थी एक कार
पत्नी ने टोका, “कहाँ खो गए सरकार ?”
देखा कनखियों से, आ गया था
अचानक उनके चेहरे पर निखार !
नजर दौड़ाई तो दिखा एक ठेले वाला
कर रहा था जो गोलगप्पों का व्यापार
एजी, खायेंगे न, आँखों ही आँखों में
पढ़ लिया श्रीमती का इसरार !
अनिता निहालानी
१० फरवरी २०११