कृष्ण रंग में डूबा अंतर
श्याम रंग में भीगा अंतर
भीगी मन की धानी चूनर,
कोरा जिसको कर डाला था
विरह नीर में डुबो डुबोकर !
जन्मों से था जो सूखा सा
जैसे कोई मरुथल बंजर,
कैसे हरा-भरा खिलता है
कृष्ण रंग में डूबा अंतर !
एक डगर थी सूनी जिस पर
पनघट नजर नहीं आता था,
काँटों में उलझा था दामन
श्यामल रंग से न नाता था !
भर पिचकारी तन पे मारी
सप्त रंगी सी पड़ी फुहार,
पोर-पोर शीतल हो झूमा
फगुनाई की बहती बयार !
रंग दिया किस रंग में आज
कान्हा रंग रसिया ह्रदय का,
राधा रंग गई, मीरा भी
हुआ सुवासित कण-कण तन का !
सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर ! आप को शुभ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंअति सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्णा।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी !
हटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रतिभा जी !
हटाएंमनभावन सृजन
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
स्वागत व आभार !
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंश्याम रंग मे सरोबार लाजवाब सृजन
जवाब देंहटाएंवाह!!!
स्वागत व आभार सुधा जी !
हटाएंकृष्णभक्ति के विविध रंगों को बिखेरती मनभावन रचना। सादर।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रतिक्रिया हेतु आभार मीना जी !
हटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंजय श्रीकृणा👏👏
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी पर बहुत सुंदर सार्थक रचना।