बुधवार, दिसंबर 4

शून्यता

शून्यता 


‘कुछ होने’ की दौड़ छोड़कर 

जब जान लेता है कोई 

कि होना मात्र ही 

शुद्ध आनंद होना है 

तब भयमुक्त हो जाती है 

उसकी समृद्ध और तृप्त चेतना 

कुछ खोया नहीं और 

सब पा लिया जाता है 

अस्तित्त्व बरस उठता है 

आशीष बनकर

शीतल, नूतन मौन घेर लेता है  

जीवंत हो जाता है कण-कण 

पोषित होता सूर्य की किरणों से 

हवाओं और आकाश की असीमता से 

होती जाती है अधिक मानवीय 

और एक दिन 

शून्य बन जाता है मन 

कृतज्ञता भर जाती है पोर-पोर में 

उसके लिए  

 उसी के द्वार से आती है सदा

दिव्यता की झलक 

गंध अदृश्य की 

संगीत उस अमूर्त का 

फिर हर घड़ी उसी का दर्शन  

जैसे मीरा को श्याम का 

किसी झुरमुट या 

नीले-काले आकाश में 

घनश्याम को देखती  

वह मिट गई थी 

बस उसका होना मात्र था 

और होना मात्र ही 

शुद्ध आनंद होना है !


7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत आभार रवींद्र जी !

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  2. शून्य की अनुभूति कैसी होती होगी ... पर आपने निर्भार होने का आभास करा दिया । आभार।

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  3. और होना मात्र ही

    शुद्ध आनंद होना है ! - यह समझ लेना, आनंद की अनुभूति है!

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