शुक्रवार, नवंबर 22

प्रेम

प्रेम 


याद 

हवा की तरह आती है 

और छू कर चली जाती है 

किसी झील की शांत सतह पर 

उड़ते हुए पंछी के पंखों में 

क्योंकि अंततः सब एक है 

प्रेम बरसता है छंद बनकर 

किसी कवि की कविता से 

या चाँदनी बनकर सुनहरे चाँद से 

नहीं होता उस पर किसी का एकाधिकार 

वह तो सबके लिए है 

नदियों, सागरों, मरुथलों 

और बियाबानों तक के लिए 

जिनसे मिलने जाते हैं 

युगों से यात्री 

सितारों के बताये रास्तों से गुजर 

ऐसा प्रेम 

जिसका कोई नाम नहीं है 

वही बच रहता है 

संगीत बनकर 

हर दिल की धड़कन में ! 






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