ॐ
जो आकाश है
वही सूरज बन गया है
जो सूरज है
वही धरा बना
जो धरा है वही चाँद
और सभी निरंतर होना चाहते हैं
वह, जो थे
जाना चाहते हैं वहाँ
जहाँ से आये थे !
आदमी में
आकाश है परमात्मा
सूरज - आत्मा
चाँद - मन और
धरा है देह
मन, देह से और
देह, आत्मा से जुड़ना चाहती है
आत्मा की चाह है परमात्मा से जुड़
आकाश होना
यही गति जीवन है
अंततः सभी आकाश हैं
विस्तीर्ण, अनंत, शून्य आकाश !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 28 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बहुत आभार रवींद्र जी !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंशून्य का विस्तार अनंत है ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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