शुक्रवार, दिसंबर 6

यज्ञ

यज्ञ 

एक यज्ञ चलता है बाहर 

शुभ कर्म बनें अगरु व चंदन, 

एक यज्ञ चलता है भीतर 

श्वासों में हो पल-पल सुमिरन !  


अग्नि वही समिधा भी वह है 

वेदी व ‘होता’ भी वही है, 

नव प्रेरणा उमंग ह्रदय की 

उलझ-पुलझ में वही सही है ! 


बरस रहा मेघ के संग जो 

नीर वही नदिया में बहता, 

तृषा बुझाता आकुल उर की 

अखिल विश्व को ढक कर रहता !


11 टिप्‍पणियां:

  1. बरस रहा मेघ के संग जो
    नीर वही नदिया में बहता,
    तृषा बुझाता आकुल उर की
    अखिल विश्व को ढक कर रहता !

    जीवन दर्शन पर सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत गहरा दिव्य भाव अनीता जी । बाह्यान्तर में यह समानता हो तो जीवन पवित्र यज्ञ होजाए। सबसे कठिन यही है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्वागत व आभार ! प्रयास जारी रहना चाहिए

      हटाएं