नभ झाँके जिस पावन पल में
सुखद खुमारी अनजानी सी
‘मदहोशी’ जो होश जगाए,
सुमिरन की इक नदी बह रही
रग-रग तन की चले भिगाए !
नीले जल में मन दरिया के
पत्तों सी सिहरन कुछ गाती,
नभ झाँके जिस पावन पल में
छल-छल कल-कल लहर उठाती !
छू जाती है अंतर्मन को
लहर उठी जो छुए चाँदनी,
एक नजर भर देख शशी को
छुप जाती ज्यों पहन ओढ़नी !