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रविवार, सितंबर 8

गणेश चतुर्थी पर हार्दिक शुभकामनायें - ऐसा है वह गणराया

 ऐसा है वह गणराया  



मौन मुखर हो उठा है उसका
सदियों से जो चुप बैठा है,
इक मुस्कान से उगता सूरज
दूजे से चंदा उगता है !

फूल भी तो कह जाते सब कुछ
मौन टूटता ही रहता है,
नदियाँ, पर्वत, पंछी गाते  
गणनायक न कुछ कहता है !

कर्महीन न रहता पल भर
पल-पल नया रचे जाता है,
ढूँढ़ ढूँढ़ मन हुआ अचम्भित
 वह अनंत सृजे जाता है !

करुणा का इक सागर भीतर
हर कल्पित सुख हो साकार,
ज्ञान, शब्द से बाहर आकर
 क्षण-क्षण लेता है आकार !

क्षितिज बना है उसका अंतर
जल, थल, अनल, अनिल से सजकर
स्वयं ही पूजित स्वयं ही पूजा
 स्वयं पुजारी जाता रचकर !

अशना और पिपासा जागे
जब सत्य की मानव उर में,
 तभी शुरू होता है सुख का
सफर एक अनुपम जीवन में !