नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !
मौन की गूँज
सन्नाटा बहता जाता है
नीरवता छायी है भीतर,
खामोशी सी पसर रही है
गूंज मौन गूँजे रह-रह कर !
तृप्ति सहज धारा उतरी ज्यों
सारा आलम भीग रहा है,
ज्योति स्तंभ का परस सुकोमल
हर अभाव को पूर रहा है !
चाहत की फसलें जो बढ़तीं
काटीं किसने कौन बो रहा,
जगत का यह प्रपंच सुहाना
युग-युग से अनवरत चल रहा !