तानाशाही
निरंकुश सरकारों का
दमन चक्र
जब चलता है
न जाने कितने देशों में
मानवाधिकारों का हनन करता है
पार कर जाते हैं
जब तानाशाह
क्रूरता की हदें
पिसती है बेक़सूर जनता
जो विरोध तक नहीं जता पाती
और चंद लोग
जो आवाज़ उठाते हैं
कुचल दी जाती है उनकी ताक़त
डरा-धमका कर
या कभी जान भी लेकर
ऐसी सरकारें स्वतंत्र होकर भी
स्वतंत्र नहीं होतीं
वे भी किन्हीं के इशारों पर चलती हैं
उनके मालिक होते हैं
अहं और लोभ
हिंसा और दमन उनके अस्त्र
तब यूएनओ भी
साक्षी बना रहता है
क्योंकि वहाँ बैठे ज़्यादा लोग आते हैं
ऐसे मुल्क से
जो मानता है स्वयं को दुनिया का पैरोकार
सत्ता कोई भी सँभाले
आ जाता है उसे
दुनिया को चलाने का अधिकार !