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सोमवार, नवंबर 1

मर कर जो जी उठा

मर कर जो जी उठा 


​​जीवन का मर्म खुला 

दूजा जब जन्म हुआ, 

मर कर जो जी उठा 

उसको ही भान हुआ !


मृत्यु का खटका सदा 

कदमों को रोकता, 

‘मैं हूँ’ कुछ बना रहूँ 

भाव यही टोकता !


पल-पल ही घट रही 

मृत्यु कहाँ दूर है, 

मन मारा, तन झरा 

जग का दस्तूर है !


दिल में रख आरजू 

जो खुद में खो  गया, 

पकड़ छोड़ अकड़ छोड़ 

रहे, वही जी गया !


जीवन कब सदा रहे 

त्याग का ही खेल है, 

इस क्षण जो जाग उठे

हुआ उससे  मेल है !