मर कर जो जी उठा
जीवन का मर्म खुला
दूजा जब जन्म हुआ,
मर कर जो जी उठा
उसको ही भान हुआ !
मृत्यु का खटका सदा
कदमों को रोकता,
‘मैं हूँ’ कुछ बना रहूँ
भाव यही टोकता !
पल-पल ही घट रही
मृत्यु कहाँ दूर है,
मन मारा, तन झरा
जग का दस्तूर है !
दिल में रख आरजू
जो खुद में खो गया,
पकड़ छोड़ अकड़ छोड़
रहे, वही जी गया !
जीवन कब सदा रहे
त्याग का ही खेल है,
इस क्षण जो जाग उठे
हुआ उससे मेल है !