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शनिवार, अप्रैल 8

मिलन

मिलन 

एक कदम बढ़ाओ तो  
वह हज़ार कदमों से चलकर आता है 

आवाज़ लगाने भर की देर है 

भेज देता है देवदूत सा कोई जन 

जिसका सान्निध्य 

शीतल जल और अग्नि एक साथ है 

जो जला डालता है सारे बंधन 

और मिटा देता उनकी राख भी

बहा निर्मल ज्ञान गंगा 

 खिल जाते हैं अंतरउपवन

प्रेम की पूर्णता के रूप में 

 उगता है चाँद

बिखरी है जिसमें

 शरद की ज्योत्सना   

बरसती हैं जल धाराएँ 

 सावन-भादों की 

मानो झर रही हो नभ से शांति और शुभता 

अनंत से मिलन का यही तो परिणाम है 

कि वह हर जगह है 

हिमालय की गुफाओं में ही नहीं 

अंतर गह्वर में भी, क्योंकि 

भीतर ही काशी है भीतर ही कैलाश !