स्वर्ग धरा पे लाए कौन
अवसर नहीं चूकता कोई
नर्क गढ़े चले जाता है,
नर्क का ही अभ्यास हो चला
स्वर्ग धरा पे लाए कौन ?
शक होता है प्यार पे सबको
नफरत को जपते माला से,
अंधकार में रहना भाता
ज्योति यहाँ जलाये कौन ?
डर कायम है भीतर-भीतर
ऊपर चस्पां है मुस्कान,
चुनता है मन असंतोष ही
मधुर गान फिर गाए कौन ?
जिसने यह सच जान लिए हैं
वही बनेगा भागीरथ अब,
धरती पर सुर सरि बह निकले
सहज प्रेम ही बरसेगा तब !