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शुक्रवार, मार्च 24

मिजोरम - एक अनोखा प्रदेश (तीसरा भाग )

मिजोरम - एक अनोखा प्रदेश (तीसरा भाग )

१७ मार्च २०१७-लुंगलेई
आज भी सुबह मुर्गे की आवाज आने से पहले ही नींद खुल गयी. आज की सुबह भी पहले से बिलकुल अलग थी. कमरे की विशाल खिड़की से जिस पर लगे शीशे से बहर का दृश्य स्पष्ट दिखाई देता है, पर्दे हटा दिए. अभी बाहर अँधेरा था. आकाश पर तारे नजर आ रहे थे. धीरे-धीरे हल्की लालिमा छाने लगी और गगन का रंग सलेटी होने लगा, फिर नीला और पांच बजे के बाद सूर्योदय होने से पहले आकाश गुलाबी हो गया. साढ़े पांच बजे चर्च की घंटी बजने लगी और लाल गेंद सा सूरज का गोला पर्वतों के पीछे से नजर आने लगा. इसके बाद कुछ दूर कच्चे रास्ते पर नीचे उतर कर हम घाटियों में तिरते बादलों को देखने गये. दूर-दूर तक श्वेत रुई के से बादलों को पर्वतों की चोटियों पर ठहरे हुए देखा. नहाधोकर नाश्ता करके साढ़े सात बजे हमने वापसी की यात्रा आरम्भ की, दोपहर एक बजे वापस आइजोल पहुंच गये. रास्ता सुंदर दृश्यों से भरा था, हरे-भरे जंगल, बेंत के झुरमुट तथा छोटे-छोटे गाँव था कस्बे. मुश्किल से एकाध जगह ही हमें खेत दिखे. इस इलाके में झूम खेती की जाती है. मार्ग में पड़ने वाला वानतांग नामक झरना देखने भी हम गये. काले पत्थरों को काटता हुआ काफी ऊँचाई से बहता हुआ अपनी तरह का एकमात्र जलप्रपात !

मिजोरम में यह हमारी अंतिम रात्रि है. दोपहर का भोजन करके हम शहर के कुछ अन्य दर्शनीय स्थल देखने गये. ताजमहल नामक एक स्मारक जो एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी की स्मृति में बनवाया था, जिसमें उसके वस्त्र तथा अन्य सामान भी सहेज कर रखे हैं, अब इस स्मारक में उसके पूरे परिवार को दफनाया गया है. इसके बाद आइजोल की सबसे ऊंची पहाड़ी पर बना थियोलोजिकल कालेज देखने गये. जहाँ से पूरा शहर दिखाई देता है. 

इसके बाद हमारा पड़ाव था निर्माणाधीन सोलोमन टेम्पल, जो पिछले बीस वर्षों से बन रहा है और अभी भी इसके पूरा होने में काफी समय लगेगा. कल दोपहर हमें वापस जाना है.

१८ मार्च २०१७ - आइजोल
कल रात्रि लगभग एक बजे से लगतार समूह गान की आवाजें हमारे कानों में सुनाई दे रही हैं. खिड़की से झांककर देखा तो पिछवाड़े की एक इमारत में लगभग पचास-साथ लोग बेंचों पर बैठे हैं और एक ड्रम की बीट के साथ लय बद्ध गा रहे हैं, लगातार यह गाने का कार्यक्रम चल रहा है. गेस्ट हॉउस के रसोइये ने बताया, कल शाम को ही लाऊडस्पीकर पर एक घोषणा की गयी थी कि कोई व्यक्ति देह त्याग गया है. उसी के शोक में यह गायन चल रहा है. दोपहर बारह बजे के बाद मृतक को ले जायेंगे.

सुबह हम गेस्ट हॉउस के पीछे वाली सड़क पर लगने वाले स्थानीय शनि बाजार को देखने गये, बीसियों दुकानें लगी थीं, ज्यादातर महिलाएं सड़क के दोनों ओर दुकानें लगा रही थीं, दस प्रतिशत ही पुरुष रहे होंगे. कपड़े, बरतन, सजावट की वस्तुएं, खाद्य पदार्थ यानि हर तरह की वस्तुएं वहाँ  बिक रही थीं, उस समय सुबह के साढ़े पांच बजे थे, अर्थात वे लोग अवश्य ही तीन बजे उठ गये होंगे. आज आकाश में बादल हैं, शायद शाम तक वर्षा हो, हवा में एक अजीब तरह की गंध है, यहाँ के अस्सी प्रतिशत लोग खेती से जुड़े कार्यों में रत हैं. साधन न होने के कारण खेती के लिए उपलब्ध जमीन के मात्र छह प्रतिशत पर ही खेती की जा रही है. कल रात को किसी पशु के रोने की आवाज आ रही थी, जिसे सुनकर बचपन में मेहतरों के मोहल्ले से आती करूण पुकार स्मरण हो आयी. काश इन्हें भी शाकाहारी भोजन व्यवस्था के बारे में जानकारी देने वाला कोई संत मिले. चर्च में इनकी आस्था है पर वहाँ न नशे के खिलाफ कुछ कहा जाता है न मांसाहार के ही. डेढ़ वर्ष पहले तक यह शुष्क राज्य था, पर अब सरकारी दुकानें हैं तथा हर व्यक्ति को कार्ड के आधार पर नियत मात्रा में मादक पेय दिया जाता है.
क्रमशः

गुरुवार, मार्च 23

मिजोरम - एक अनोखा प्रदेश ( दूसरा भाग )

मिजोरम - एक अनोखा प्रदेश ( दूसरा भाग )

सुबह पांच बजे से भी पहले मुर्गे की बांग सुनकर हम उठे गये. सूर्योदय होने को था, कुछ तस्वीरें उतारीं. पल-पल आकाश के बदलते हुए रंग यहाँ के हर सूर्योदय को एक आश्चर्यजनक घटना में बदल देते हैं. रंगों की अनोखी छटा दिखाई देती है. गेस्ट हॉउस के रसोइये ने आलू परांठों का स्वादिष्ट नाश्ता परोसा. सवा आठ बजे हम आइजोल से, जो मिजोरम की राजधानी है, लुंगलेई के लिए रवाना हुए. लगभग पांच घंटों तक सुंदर पहाड़ी घुमावदार रास्तों पर चलते हुए दोपहर सवा एक बजे गन्तव्य पर पहुंच गये. सड़क अपेक्षाकृत बहुत अच्छी थी, पता चला यह सड़क विश्व बैंक के सहयोग से बनी है, मार्ग में एक दो स्थानों पर भूमि रिसाव के कारण सड़क खराब हो गयी है, जिसके दूसरी तरफ मीलों गहरी खाई होने के कारण बड़ी सावधानी से चालक वाहन चलाते हैं. मार्ग में एक जगह चाय के लिए विश्राम गृह में रुके, मिजोरम के हर जिले में एक से अधिक सरकारी यात्रा निवास हैं. लुंगलेई का यह टूरिस्ट लॉज भी काफी बड़ा व साफ-सुथरा है. बालकनी से पर्वतों की मनहर मालाएं दिखती हैं. सामने ही मिजोरम के बैप्टिस्ट चर्च की सुंदर भूरे रंग की विशाल इमारत है. बाहर निकलते ही एक बड़ा अहाता है, जिसमें एक वाच टावर बना है. जिसपर चढ़कर हमने सूर्यास्त का दर्शन किया, तथा रंगीन बादलों और आसमान की कुछ अद्भुत तस्वीरें उतारीं. रात्रि में यहाँ का आकाश चमकीले तारों से भर जाता है और धरती भी चमकदार रोशनियों से सज जाती है. हजारों की संख्या में पास-पास घर बने हैं, जो पहाड़ियों को पूरा ढक लेते हैं और शाम होते ही चमकने लगते हैं. यहाँ की हवा में एक ताजगी है.  


मिजोरम के लोगों के रहन-सहन तथा रीतिरिवाजों के बारे में कई रोचक जानकारियां मिली हैं. ये लोग सुबह जल्दी उठते हैं, चार बजे से भी पहले तथा सुबह छह बजे ही दिन का भोजन कर लेते हैं. इसके बाद काम पर निकल जाते हैं तथा दोपहर को भोजन नहीं करते. शाम का भोजन छह बजे ही कर लेते हैं, इसलिए यहाँ बाजार जल्दी बंद हो जाते हैं. कुछ देर पहले हम बाजार गये लेकिन ज्यादातर दुकानें बंद हो चुकी थीं. यहाँ भोजन में ज्यादातर चावल, मांस तथा उबली हुई सब्जियां ही खायी जाती हैं. मसाले भी नहीं के बराबर. यहाँ बहुविवाह प्रथा प्रचलित है तथा स्त्री या पुरुष दोनों को इसका समान अधिकार है. महिलाएं यहाँ सभी प्रकार के काम करती हैं, बचपन से ही उनके साथ कोई भेद भाव नहीं किया जाता. उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का पूरा अवसर मिलता है. तलाक लेना यहाँ बहुत आसान है. किसी भी तरह का विवाद लोग आपसी बातचीत से सुलझा लेते हैं. पुलिस तथा अदालत तक मामला पहुंचने की नौबत नहीं आती. सडकों पर ड्राइवर एक दूसरे को रास्ता देते हैं तथा अपने वाहन को पीछे ले जाने में जरा भी नहीं हिचकते.

१६ मार्च २०१७ लुंगलेई

लुंगलेई में हमारी पहली सुबह है. पंछियों की आवाजों ने हमें जगा दिया, कमरे की खिड़की से परदा हटाया तो सामने पर्वतमालाएं थीं और आकाश पर गुलाबी बादल. जैसे सामने कोई चित्रकार अदृश्य हाथों से अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा हो. सामने वाले पहाड़ हरे वृक्षों से लदे थे, उसके पीछे काले पर्वत जिनके वृक्षों की आकृतियाँ खो गयी थीं पर आकार फिर भी नजर आ रहे थे. तीसरी श्रेणी, जहाँ ऊँची-नीची सी वृक्षों की चोटियाँ मात्र दिख रही थीं, और उसके पीछे स्वप्निल से पहाड़ जो धुंध और सलेटी कोहरे में लिपटे थे. एक के पीछे एक तीन-चार पर्वत श्रेणियां और ऊपर गहरा नीला आकाश और उस पर सुनहरे चमकते बादल, जो गगन के राजा के आने का संदेश दे रहे थे. तभी चर्च से घंटियों का स्वर आने लगा और पूरा वातावरण एक आध्यात्मिक रंग में सराबोर कर गया. कुछ देर बाद हम प्रातः भ्रमण के लिए निकले, हवा ठंडी थी, बाहर का तापमान आठ डिग्री था. निकट ही बादलों को पर्वतों की श्रंखलाओं पर सिमटते हुए देखा, एक अद्भुत दृश्य था.  


अब शाम के पांच बजे हैं. हम आज जल्दी जाकर बाजार से लौट आये हैं. सुबह पतिदेव जब अपने काम के सिलसिले में चले गये तो मैंने कुछ देर कमरे में रखी बाइबिल पढ़ी, नया नियम नाम से छोटी सी हिंदी में लिखी पुस्तक, जो कई स्थलों पर बहुत रोचक और उत्साहवर्धक लगी, परमात्मा का राज्य हमारे भीतर है, हम इस बात को भुला देते हैं और व्यर्थ ही परेशान होते हैं. कल हमें वापस आइजोल जाना है और परसों कोलकाता, तथा उसके अगले दिन असम. 
क्रमशः