स्वयं ही स्वयं को लिखता पाती
जीवन है सौगात अनोखी
माँ का आंचल, पिता का सम्बल,
प्रियतम का सुदृढ़ आश्रय
वात्सल्य का निर्मल सा जल !
गीत भी है, संगीत जहाँ में
दृश्य सुहाने मोहक मंजर,
वर्षा की सोंधी सी खुशबू
भोर हुए पंछी के मृदु स्वर !
झोली भर-भर मिले खजाने
कुदरत का अनन्य कोष है,
तृप्त हुआ बस डोले इत-उत
अंतर जिसके जगा तोष है !
श्वास-श्वास है नेमत उसकी
अमृत सा जल, सूरज, बादल,
नेह का ताप, प्रीत शीतलता
उमड़-घुमड़ बरसा अश्रुजल !
भाव जगाता, शब्द सुझाता
स्वयं ही स्वयं को लिखता पाती,
कैसी अद्भुत एक ऊर्जा
अनायास सृष्टि अँक जाती !
सर्व सुखी भव, सर्व निरामय
गीत पुन ऐसे गाने हैं,
बने प्रार्थना धड़कन दिल की
बहें जो मधुर तराने हैं !