गुरुवार, अप्रैल 7

अद्वैत की महक

अद्वैत की महक

चलो, उठ खड़े हों, झाडें सिलवटों को
मन के कैनवास को फैला लें क्षितिज तक
प्यार के रंगो से फिर कोई खूबसूरत सोच रंग डालें !

चलो ऑंखें बंद करें, जाने अंतर्मन को
आत्मशक्तियां जागृत होकर एक हों,
और अपना छोटे से छोटा सुख भी साझा हो जाये !

चलो कह दें, सुना दें मन की हर उलझन
समझ लें, गिन लें दिल की हर धड़कन
अपना सब कुछ सौंप कर निश्चिंत हो जाएँ !

चलो करीब आयें जश्न मनाएं  
विश्वास का अमृत पियें, बांटें
मै और तुम से मुक्त होने की याद में कोई गीत गाएँ
अद्वैत की महक से दुनिया महकाएँ !

अनिता निहालानी
७ अप्रैल २०११  

मंगलवार, अप्रैल 5

या रब

या रब

या रब हो मेरे दिल का इतना बड़ा मकां
दुनिया के सब गमों को उसमें पनाह मिले !

बरसें मेरे आंगन में चाहे न बदलियाँ
सरहद के उस पार पर पानी सदा मिले !

चलता रहे इस दिल में दुआओं का सिलसिला
खुशबू सी जाके छूलें ऐसी शिफा मिले !

अंतर से फूटतीं हों नेह की हजार किरणें
पहरों में कैद गम का उनको पता मिले !

जन्मों से ढूंढते हैं तेरा ठिकाना जो रब
उनको मेरी नजरों से तेरा पता मिले !

अनिता निहालानी
५ अप्रैल २०११  

रविवार, अप्रैल 3

नहीं खेल कोई क्रिकेट सरीखा

नहीं खेल कोई क्रिकेट सरीखा

सोने की किरणों की चादर
मानो थी भारत ने ओढ़ी,
शरमाने लगे सितारे भी
जगमग रोशनियाँ जब छोडीं !
  
एक नया इतिहास बनाया
सारी दुनिया को दिखलाया,
एक साथ दिल सबके धड़के
जोश भरे तन-मन जब थिरके !

क्रिकेट बना है धर्म अनोखा
नहीं खेल कोई क्रिकेट सरीखा,
धर्म, जाति, भाषा को छोड़ा
कोटि-कोटि जनों को जोड़ा !

एक ही आशा एक भावना
विश्व कप है हमको पाना,
धोनी ने की टीम तैयार
सचिन को देने इक उपहार !

गैरी क्रिस्टन बने द्रोण हैं
गिन-गिन सारे गुर सिखलाये,
श्रीलंका ने खेला डट के
पर भारत ने दांव दिखाए !

युवराज हो या गम्भीर
सबने छोड़े अपने तीर,
टिक न पाए प्रतिद्वंद्वी
विजय पताका लहरा दी !

उत्सव का माहौल बना है
सारा भारत साथ खड़ा है,
एक ही धुन है एक जोश है
दिलों में सबके संतोष है !

अनिता निहालानी
३ अप्रैल २०११

शुक्रवार, अप्रैल 1

नर्तक एक अनोखा देखा

नर्तक एक अनोखा देखा

धूप नाचती नाचे छाया
वृक्ष नाचते नाचे काया,
मुंदी पलक में स्वप्न थिरकते  
उपवन उपवन पुष्प नाचते !

शिशु कोख में माँ में आशा
बीज धरा में उर अभिलाषा,
नित्य नाचते पल्लव किसलय
सँग नाचते मृण्मय चिन्मय !

श्वासें नाचें रक्त नाचता
शंकर नाचें भक्त नाचता,
हवा नाचती स्थाणु नाचें
अणु-अणु परमाणु नाचें !

नृत्य समाया लहर-लहर में
दृष्टि नाचती डगर-डगर में,
शब्द नाचते कवि कलम में
भाव नाचते पाठक दिल में !

नृत्यांगना के चरण थिरकते
छेनी नाचे प्रस्तर तन पे,
वीणा की स्वरलहरी नाचे
मीरा के पग घुंघरू नाचे !

कृष्ण नाचते राधा नाचे
वन-जंगल में मोर नाचते,
नृत्य कर रही है हर रेखा
नर्तक एक अनोखा देखा !

अनिता निहालानी
१ अप्रैल २०११  

बुधवार, मार्च 30

मन राधा उसे पुकारे

मन राधा उसे पुकारे

झलक रही नन्हें पादप में
एक चेतना एक ललक,
कहता किस अनाम प्रीतम हित
खिल जाऊँ उडाऊं महक !

पंख तौलते पवन में पाखी
यूँ ही तो नहीं गाते,
जाने किस छुपे साथी को
टी वी टुट् में पाते !

चमक रहा चिकना सा पत्थर
मंदिर में गया पूजा,
जाने कौन खींच कर लाया
भाव जगे न दूजा !

चला जा रहा एक बटोही
थम कर किसे निहारे,
गोविन्द राह तके है भीतर
मन राधा उसे पुकारे !

अनिता निहालानी
३० मार्च २०११



मंगलवार, मार्च 29

अमृत का एक द्वार छिपा


 
रात और दिन दो मित्रों से
मिलते रहते हैं अविराम,
जीवन के कोरे कागज पर
रंग बिखेरें सुबहोशाम !

पलक झपकते में मिल जाता
अमृत का एक द्वार छिपा,
लेकिन वह पल ठहर न पाता
यह सूरज कितनी बार उगा !

जब आयेगी, तब देखेंगे
बार-बार विस्मित हो भूले,
मृत्यु तो जीवन का द्वार
कह कर सुख झूले में झूले !

बढ़ती ही जा रही ऊर्जा
जब से सच का साथ रहा है,
कंकड़-पत्थर दूर हुए सब
हीरे सा मन याद रहा है !

गूंगी पीड़ा हूक उठी जो
मांग रही है कीमत अपनी,
रातों को जो जाग रही थी
नींद पूछती किस्मत अपनी !

क्या केवल दुःख के पल बोये
सुख की बेल सूखती जाती,
जैसे जैसे दिन बीते हैं
दुनिया और अकड़ती जाती !

२९ मार्च २०११


रविवार, मार्च 27

सुरमई शाम

सुरमई शाम

ढल रही है शाम ऐसे
इक मधुर सुस्व्प्न जैसे !
नील अम्बर मुग्ध तकता
बादलों के पार हँसता,
तैरते हैं कुछ विहग
लें आखिरी उड़ान खग !
वृक्ष भी हो मौन नत हैं,
फूल सो जाने में रत हैं !
दिन सिमट कर गमन करता
रात का रथ कहीं सजता !
पंछियों के गान छूटे
दादुरों के बोल फूटे,
झींगुरों ने साज बांधे
लता सोयी वृक्ष कांधे !
सुरमई यह शाम प्यारी
याद लाती है तुम्हारी !

अनिता निहालानी
२७ मार्च २०११  

गुरुवार, मार्च 24

सच के फूलों की फसल


सच के फूलों की फसल  

कागज पर उतरते हैं शब्द
साथ चली आती है
नामालूम सी उदासी की लहर
उपजी है जो भीतर
किसी गहरे अंतराय से !

सत्य के पक्ष में खड़े होना हो तो
इसे अपना साथी बना लो,
बार-बार सहनी होगी यह चुभन
काँटे जो बिछे हैं
सच की राह में मीलों तक !

माना कि ऊपर नीला गगन है
और पगडंडी के किनारे-किनारे
उगे फूलों की सुवास
सहला जाती है,
और समन्दर है भीतर
जो बहा ले जायेगा पथ के कंटक !

लेकिन कोई एक कांटा
फिर उभर आयेगा
होना है हमें शुक्रगुजार जिसका,
जो पता देता है भीतर
किसी अंतराय का
कांटा तो एक बहाना है
निजात तो उससे पाना है
छिपा है जो सागर के तल से
गुजरती सुरंग में !

कांटा निकाल लाएगा
उस दानव को बाहर
दानव जो छिपा है भीतर
जब-जब उठाता है सर  
बिंध जाता है मन
उसके नुकीले नखों से!

हर बाहर प्रतिबिम्ब है भीतर का !
पथ के काँटे ही बन जाते
प्रकाश स्त्रोत, दिखाते गड्ढे
पाटना है जिन्हें सुनहले सागर से
तब उतरेंगे शब्द कागज पे
और साथ चली आयेगी लहर तृप्ति की !

जब तक न घटे यह घटना
शुक्रगुजार होते रहना है
पथ के काँटों का, सबब हैं जो
सच के फूलों की फसल के !

अनिता निहालानी
२४ मार्च २०११  






बुधवार, मार्च 23

आधुनिक शिक्षा प्रणाली

आधुनिक शिक्षा प्रणाली

स्कूल में पधारे अतिथि ने,
आँखों में ऑंखें डाल
एक बच्चे से पूछा सवाल
बेटा, बड़े होकर क्या बनना चाहते हो ?

बच्चा कुछ ज्यादा ही समझदार था
बिरवान होनहार था,
बोला, यदि और कुछ न बन पाया
तो भी रोजी-रोटी चला लूँगा,
पीठ पर लादता हूँ रोज बस्ता  
बड़ा होकर बोझ उठा लूँगा !
अतिथि चकराया, तो बच्चे ने उसे
अपना भारी बैग दिखाया !

अतिथि कुछ आगे बढा
एक नन्हीं बालिका से पूछा उसका हाल
बोली, जानकर आपको होगा मलाल
रटने पड़ते हैं ढेर सारे उत्तर
उगल आते हैं जिन्हें कापी पर
बड़ी होकर क्या बनूंगी नहीं जानती
पर क्या होता है बचपन अनजान हूँ इससे भी !

सुना है बचपन मुक्त होता है सारे बन्धनों से
यहाँ तो हर सुबह शुरू होती है लैसनों से,
अतिथि ने भाषण की, की थी बड़ी तैयारी
धरी रह गयी सारी की सारी
बोला, आधुनिक शिक्षा पाठ्यक्रम है बड़ा भारी
डाली है इसने नाजुक कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी !

अनिता निहालानी
२३ मार्च २०११    
  

सोमवार, मार्च 21

महाप्रलय

महाप्रलय

कैसी होती है महाप्रलय
झांका जब मैंने ग्रंथों में,
जहाँ पुकार-पुकार कह रहे
कवि-ऋषि अति स्पष्ट शब्दों में !

सृष्टि बनती और बिगड़ती
जाने कितनी बार उजड़ती,
पुनः-पुनः सजती और संवरती
नई-नई तकदीरें गढ़ती !

जब पूरी होती युग आयु
अनाचार प्रबल हो जाता,
जब सत्य, धर्म को तज मानव
निज सुख-साधन में खो जाता !

तब बादल जल ना धारेंगे
त्राहि-त्राहि मच जायेगी,
सूर्य प्रचंड तपन देगा
सागर, नदियाँ कुम्हलायेंगी !

संवर्तक दावाग्नि से
जल जंगल तृण से राख बनें,
अग्नि भूगर्भ की भी जागे
फट ज्वालामुखी लावा उगलें !

वायु धू-धू कर जला करे  
फिर छा जाये घनघोर घटा
गर्जन-तर्जन करते मेघा
वर्षा की बहे अविरल छटा !

बारह बरसों तक पानी की
धाराओं से धरती भीगे
 डूब-डूब जाएंगे प्राणी  
विश्राम करें ब्रह्मा जल में !

एकार्णव में रहें डोलते
बरगद पत्ते पर गोविन्द
दर्शन देते मार्कंडेय को
प्रलय काल का होगा अंत !

अनिता निहालानी
२१ मार्च २०११



शनिवार, मार्च 19

देखो आयी होली

देखो आयी होली


बौराया आम्र, मंजरी झूल रही गर्वीली
हवा फागुनी मस्त हुई बिखरी सुवास नशीली !

मोहक, मदमाता मौसम खिली पलाश की डाली
धूम मचाती, रंग उड़ाती देखो आयी होली !

बही बयार बड़ी बातूनी बासंती रसीली
बजे ढोल, मंजीरे खड़के, नाच उठी शर्मीली !

उपवन-उपवन पुष्पों की बारात सजी अलबेली  
गुन-गुन करते भंवरे डोलें तितली नई नवेली !

ऊपरवाला खेल रहा यूँ सँग कुदरत के होली
लाल पलाश, गुलाबी कंचन, झूमी सरसों पीली !

छंट गए सारे भेद, सुनो कोकिला वन वन बोली
मिटा द्वैत एक हुए मुखड़ों पर सजी रंगोली !

डगर-डगर हर गाँव खेत निकली मस्तों की टोली
पलकों में अनुराग भरा बोलों में मिसरी घोली !  


अनिता निहालानी
१८ मार्च २०११