रात और दिन दो मित्रों से
मिलते रहते हैं अविराम,
जीवन के कोरे कागज पर
रंग बिखेरें सुबहोशाम !
पलक झपकते में मिल जाता
अमृत का एक द्वार छिपा,
लेकिन वह पल ठहर न पाता
यह सूरज कितनी बार उगा !
यह सूरज कितनी बार उगा !
जब आयेगी, तब देखेंगे
बार-बार विस्मित हो भूले,
मृत्यु तो जीवन का द्वार
कह कर सुख झूले में झूले !
कह कर सुख झूले में झूले !
बढ़ती ही जा रही ऊर्जा
जब से सच का साथ रहा है,
कंकड़-पत्थर दूर हुए सब
हीरे सा मन याद रहा है !
हीरे सा मन याद रहा है !
गूंगी पीड़ा हूक उठी जो
मांग रही है कीमत अपनी,
रातों को जो जाग रही थी
नींद पूछती किस्मत अपनी !
क्या केवल दुःख के पल बोये
सुख की बेल सूखती जाती,
जैसे जैसे दिन बीते हैं
दुनिया और अकड़ती जाती !
२९ मार्च २०११
sukh ki bela sookhati jati-
जवाब देंहटाएंsach me din ba din duniya ka rukh badal raha hai .
kadavi sachchai kahati rachna -
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर......जीवन का यतार्थ समेटे ये पोस्ट.....प्रशंसनीय|