चेतन भीतर जो सोया है
बीज आवरण को भेदता
धरती को भेदे ज्यों अंकुर,
चेतन भीतर जो सोया है
पुष्पित होने को है आतुर !
चट्टानों को काट उमड़ती
पाहन को तोड़े जल धार,
नदिया बहती ही जाती है
सागर से है गहरा प्यार !
ऐसे ही भीतर कोई है
युगों-युगों से बाट जोहता,
मुक्त गगन का आकांक्षी जो
कौन है उसका मार्ग रोकता !
धरा विरोध करे न कोई
अंकुर को बढ़ने देती है,
पोषण देकर उसे जिलाती
मंजिल तक फिर ले जाती है
चट्टानें भी झुक जाती हैं
मिटने को तैयार सहर्ष,
राह बनातीं, सीढ़ी बनतीं
नहीं धारतीं जरा अमर्ष !
लेकिन हम ऐसे दीवाने
खुद के ही खिलाफ खड़े हैं,
अपनी ही मंजिल के पथ में
बन के बाधा सदा अड़े हैं !
जड़ पर बस चलता चेतन का
मन जड़ होने से है डरता,
पल भर यदि निष्क्रिय हो बैठे
चेतन भीतर से उभरता !
लेकिन इसको भय सताता
अपना आसन क्योंकर त्यागे,
जन्मों से जो सोता आया
कैसे आसानी से जागे !
दीवाना मन समझ न पाए
जिसको बाहर टोह रहा है,
भीतर बैठा वह प्रियतम भी
उसका रस्ता जोह रहा है !
लेकिन हम ऐसे दीवाने
जवाब देंहटाएंखुद के ही खिलाफ खड़े हैं,
अपनी ही मंजिल के पथ में
बन के बाधा सदा अड़े हैं ! ... apna durbhagy khud ... bahut kuch sikhaati rachna
लेकिन हम ऐसे दीवाने
जवाब देंहटाएंखुद के ही खिलाफ खड़े हैं,
अपनी ही मंजिल के पथ में
बन के बाधा सदा अड़े हैं !
बहुत ही सुन्दर पोस्ट......हम स्वयं ही अपने लिए बाधा हैं बहुत खूब|
ऐसे ही भीतर कोई है
जवाब देंहटाएंयुगों-युगों से बाट जोहता,
मुक्त गगन का आकांक्षी जो
कौन है उसका मार्ग रोकता !
वाह ! खुद की मुक्ति के लिए झझकोरती हुई रचना ...सच में हम खुद ही खड़े हैं अपनी राह में, सबसे बड़ी बाधा तो हम खुद ही हैं ....
बहुत अच्छा लग रहा है कविता को पढ़कर, प्रणाम स्वीकारिये !
दीवाना मन समझ न पाए
जवाब देंहटाएंजिसको बाहर टोह रहा है,
भीतर बैठा वह प्रियतम भी
उसका रस्ता जोह रहा है !
बहुत खूब ....मन के वीचारों को व्यक्त करती खूबसूरत रचना
समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
चट्टानें भी झुक जाती हैं
जवाब देंहटाएंमिटने को तैयार सहर्ष,
राह बनातीं, सीढ़ी बनतीं
नहीं धारतीं जरा अमर्ष !
बहुत ही सुंदर और सारगर्भित रचना ......
दीवाना मन समझ न पाए
जवाब देंहटाएंजिसको बाहर टोह रहा है,
भीतर बैठा वह प्रियतम भी
उसका रस्ता जोह रहा है
मोको कहाँ ढूँढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में.....!
बस यात्रा सिर्फ इतनी ही है....!!
सुन्दर भावपूर्ण....
जड़ पर बस चलता चेतन का
जवाब देंहटाएंमन जड़ होने से है डरता,
पल भर यदि निष्क्रिय हो बैठे
चेतन भीतर से उभरता !
बहुत खूभ! गहन गूढ़ आध्यात्मिक चिंतन।
कल १७-१२-२०११ को आपकी कोई पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
जड़ पर बस चलता चेतन का
जवाब देंहटाएंमन जड़ होने से है डरता,
पल भर यदि निष्क्रिय हो बैठे
चेतन भीतर से उभरता !
वाह ..कितनी गहन बात ..सुन्दर अभिव्यक्ति
लेकिन हम ऐसे दीवाने
जवाब देंहटाएंखुद के ही खिलाफ खड़े हैं,
अपनी ही मंजिल के पथ में
बन के बाधा सदा अड़े हैं
सुन्दर भावपूर्ण रचना....
सादर बधाई...
लेकिन हम ऐसे दीवाने
जवाब देंहटाएंखुद के ही खिलाफ खड़े हैं,
अपनी ही मंजिल के पथ में
बन के बाधा सदा अड़े हैं !
सत्य ।
चट्टानें भी झुक जाती हैं
जवाब देंहटाएंमिटने को तैयार सहर्ष,
राह बनातीं, सीढ़ी बनतीं
नहीं धारतीं जरा अमर्ष !
बहुत भावपूर्ण सारगर्भित प्रस्तुति. बधाई.