नर्तक एक अनोखा देखा
मुंदी पलक में स्वप्न थिरकते, उपवन-उपवन पुष्प नाचते !
शिशु कोख में माँ में आशा, बीज धरा में उर अभिलाषा,
नित्य नाचते पल्लव, किसलय, सँग नाचते मृण्मय, चिन्मय !
श्वासें नाचें रक्त नाचता, शंकर नाचें, भक्त नाचता,
हवा नाचती, स्थाणु नाचें, अणु-अणु, परमाणु नाचें !
नृत्य समाया लहर-लहर में, दृष्टि नाचती डगर-डगर में,
शब्द नाचते कवि कलम में, भाव नाचते पाठक दिल में !
नृत्यांगना के चरण थिरकते, छेनी नाचे प्रस्तर तन पे,
वीणा की स्वरलहरी नाचे, मीरा के पग घुंघरू नाचे !
कृष्ण नाचते राधा नाचे, वन-जंगल में मोर नाचते,
नृत्य कर रही है हर रेखा, नर्तक एक अनोखा देखा !
धूप नाचती नाचे छाया वृक्ष नाचते नाचे काया,
BAHUT BAHUT BAHUT SUNDAR .......SUNDARTAM .BADHAI
जवाब देंहटाएंSUNDARTAM ...ATI SUNDARTAM .HARDIK SHUBHKAMNAYEN
जवाब देंहटाएंवीणा की स्वरलहरी नाचे, मीरा के पग घुंघरू नाचे !
जवाब देंहटाएंकृष्ण नाचते राधा नाचे, वन-जंगल में मोर नाचते,
नृत्य कर रही है हर रेखा, नर्तक एक अनोखा देखा !
....वाह! अद्भुत भक्ति और प्रवाहमयी प्रस्तुति...शब्दों, भावों और लय का अप्रतिम संगम...आभार
बहुत सुन्दर........मन मयूर भी नज्ने को व्याकुल हो उठा है इस कविता के साथ............हैट्स ऑफ |
जवाब देंहटाएंअनोखी रचना , भाव नाच रहे हैं मन में.
जवाब देंहटाएंअनोखे दृश्य की अनोखी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंअनुपम!
आहाऽऽहाऽऽहऽ… !
जवाब देंहटाएंमन मोर हुआ मतवाला …
नाचेमन मोरा मगन तृक धा धि गी धि गी
क्या रचना लिखी है आपने…
धूप नाचती नाचे छाया वृक्ष नाचते नाचे काया,
मुंदी पलक में स्वप्न थिरकते, उपवन-उपवन पुष्प नाचते !
शिशु कोख में माँ में आशा, बीज धरा में उर अभिलाषा,
नित्य नाचते पल्लव, किसलय, सँग नाचते मृण्मय, चिन्मय !
श्वासें नाचें रक्त नाचता, शंकर नाचें, भक्त नाचता,
हवा नाचती, स्थाणु नाचें, अणु-अणु, परमाणु नाचें !
नृत्य समाया लहर-लहर में, दृष्टि नाचती डगर-डगर में,
शब्द नाचते कवि कलम में, भाव नाचते पाठक दिल में !
नृत्यांगना के चरण थिरकते, छेनी नाचे प्रस्तर तन पे,
वीणा की स्वरलहरी नाचे, मीरा के पग घुंघरू नाचे !
कृष्ण नाचते राधा नाचे, वन-जंगल में मोर नाचते,
नृत्य कर रही है हर रेखा, नर्तक एक अनोखा देखा !
समझ ही नहीं पाया किस पंक्ति को उद्धृत न करूं …
प्रणाम !
वाह -वाह.
जवाब देंहटाएंशब्द नाचते कवि कलम में, भाव नाचते पाठक दिल में !
जवाब देंहटाएंनृत्यांगना के चरण थिरकते, छेनी नाचे प्रस्तर तन पे,...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार..
वीणा की स्वरलहरी नाचे, मीरा के पग घुंघरू नाचे !
जवाब देंहटाएंकृष्ण नाचते राधा नाचे, वन-जंगल में मोर नाचते,...
वाह पूरा समा ही जैसे नाचने लगा है ... बहुत ही सुंदरत शब्द साधना ...