गुरुवार, अगस्त 27

मन स्वयं समिधा बन कर जलता


मन स्वयं समिधा बन कर जलता

हर अनुभव है इक गुलाब सा
रंग, सुगंध लुटाकर झरता,
या फिर कोई दीप जला हो
पथ में नव उजास हो भरता !

स्मृतियों में सुवास रह जाती
जीवन सरस हुआ सा पलता,
आभा में पाता  आश्वास
मन स्वयं समिधा बन कर जलता !

नन्हे-नन्हे कदम शिशु के
अंगुली थामे डगमग चलता,
कतरा-कतरा सघन बनेगा
बूंद-बूंद ले मेघ बरसता !


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