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गुरुवार, मार्च 30

एक आभा मय सवेरा



एक आभा मय सवेरा

नींद टूटे, जोश जागे 
हृदय से हर सोग भागे, 
याद में हो मन टिका जब 
टूटते हैं मोह धागे !

प्रेम का सूरज दमकता 
ज्योत्सना बन शांति छाए, 
एक आभा मय सवेरा 
तृप्ति की हर रात लाए !

मुक्त उर से गीत फूटे 
कर्म की ज़ंजीर बिखरे,
मिले जग को प्राप्य उसका 
रिक्त मन की गूंज उतरे !

आस का  दीपक न बुझता 
सहज सम्मुख मार्ग दिखता, 
नहीं मंज़िल दूर कोई 
हर घड़ी वह मीत मिलता !

हर कहीं मौजूद है वह
समय केवल एक भ्रम है, 
कल वही था आज भी है 
वहाँ था जो यहाँ भी है !

बुधवार, मई 27

लहरों से थपकी देता है

लहरों से थपकी देता है 


कोई सुख का सागर बनकर 
लहरों से थपकी देता है, 
हौले-हौले से नौका को 
मंजिल की झलकी देता है !

बरसे जाता दिवस रात्रि वह 
मेघा लेकिन नजर न आये, 
टप टप टिप टिप के मद्धिम स्वर 
मानो दूर कहीं गुंजाये !

कोई ओढ़ा देता कोमल 
प्रज्ज्वलित आभा का आवरण, 
सुमिरन अपना आप दिलाता 
पलकों में भर दे सुजागरण !

सूक्ष्म पवन से और गगन से 
नहीं पकड़ में समाता भाव, 
होकर भी ज्यों नहीं हुआ है 
हरे लेता है सभी अभाव !

जाने कैसी कला जानता
भावों से मन माटी भीगे, 
धड़कन उर की राग सुनाये 
भरे श्वास में सुरभि कहीं से !

गुरुवार, अगस्त 27

मन स्वयं समिधा बन कर जलता


मन स्वयं समिधा बन कर जलता

हर अनुभव है इक गुलाब सा
रंग, सुगंध लुटाकर झरता,
या फिर कोई दीप जला हो
पथ में नव उजास हो भरता !

स्मृतियों में सुवास रह जाती
जीवन सरस हुआ सा पलता,
आभा में पाता  आश्वास
मन स्वयं समिधा बन कर जलता !

नन्हे-नन्हे कदम शिशु के
अंगुली थामे डगमग चलता,
कतरा-कतरा सघन बनेगा
बूंद-बूंद ले मेघ बरसता !


मंगलवार, मार्च 3

उससे भी

उससे भी



सागर की अतल गहराई में
जहाँ छिपे हैं हजारों मोती
जिनकी आभा से जगमगाती है जल नगरी
उससे भी चमकदार है तेरा नाम !

सुदूर नील आकाश की ऊँचाई में
जहाँ चमकते हैं हजारों सितारे
जिनकी दमक लजाती है सूर्य को
उससे भी उजला है तेरा रूप !

किसी अनजान द्वीप से आती है सुवास
अनाम फूलों से
जिसे कभी छुआ नहीं किसी नासापुट ने
उससे भी ज्यादा सुवासित है तेरा स्मरण !  

सोमवार, जनवरी 5

कोई मतवाला मंजिल तक

कोई मतवाला मंजिल तक



फूल उगाये जाने किसने
गंध चुरायी है सबने,
स्वेद बहाया जाने किसने
स्वप्न सजाये हैं सबने !

कोई मतवाला मंजिल तक
जाने का दमखम रखता,
पीछे चले हजारों उसके
घावों पर मरहम रखता !

राह बनायी जाने किसने
कदम अनेकों के पड़ते,
देख उसे ही तृप्त हो रहे
पहुँचेगे, किस्से गढ़ते !

एकाकी ही लक्ष्य बेधता
भीड़ें सभी बिखर जातीं,
जीवन को सतह पर छूकर
तृप्त हुईं निज घर जातीं !

स्वर्णिम कलश सा कोई चमके
आभा मंडित सब होते,
उसको हमने भी देखा है
दर्शन पाये यह कहते !

गुरुवार, फ़रवरी 28

शुभ विवाह


हाल ही में एक विवाह में सम्मिलित होने का अवसर मिला, कुछ अलग सा अनुभव हुआ,  क्या था वह अनुभव, आप भी पढ़िये और शामिल हो जाइये इस विवाह में...


शुभ विवाह

साथी बचपन के बंधे
आज परिणय सूत्र में,
मुदित माँ करें स्वागत
द्वार पर अति प्रेम से !
एक अनोखे विवाह का
साक्षी बना संसार,
जहाँ दुल्हन ही निभाती
अन्य सभी व्यवहार !
बागडोर सम्भाले निज जीवन की
करती बड़ी कम्पनी में प्रतिष्ठित नौकरी
आत्मविश्वास भरा कदमों में
भरे स्वप्न सुंदर आँखों में... !
श्रम की आभा से दीप्त होती
माँ-पिता को आश्वस्त करती,
नए युग की नई दुल्हन
भारत का नया भविष्य गढ़ती !
न ही कोई झिझक न संकोच.
न डर कहीं नजर आता,
सधे कदमों में उसके
सुंदर भविष्य ही खबर लाता !
अंग्रेजी, हिंदी, असमिया फर्राटे से बोलती
आँखों ही आँखों में दिल के राज खोलती,
दुल्हन यह अनोखी न जरा भी शर्माती  
निज विवाह का निमंत्रण अकेले देने जाती ! 
भाई संग महाराष्ट्रीयन भाभी
आए असम पहली बार,
घूमें, छू लें असम की बयार
नहीं चाहती पड़े उन पर कोई भी भार !
दीदी भी आई गुवाहाटी से, करुणा
जितना हो सके है लुटाती
पिता आजमगढ़ी आनंद और
माँ असम की भारती !
असम और यूपी का अनोखा संगम
शाम को संगीत, सुबह हुआ जोरन
राष्ट्रीयता का प्रतीक यह शुभ विवाह
देख जिसे निकले, बस वाह ! वाह !
ले हाथों में हौराई, जहां सजे बन्दनवार
दुल्हन खड़ी लाल जोड़े में तैयार
आया दूल्हा बन राजकुमार
खुशियों से भर गया सारा परिवार !

रविवार, जुलाई 1

खाली मन का कोरा पन्ना


खाली मन का कोरा पन्ना


खाली है मन बिल्कुल खाली
सर-सर जिसमें हवा गुजरती,
कभी अनल बन लपट सुलगती
नहर विमल सलिल की बहती !

मधुर गूंजता कलरव जिसमें
कभी पिघलते मधुरिम सपने,
झरे कभी पराग सुमनों से
स्वप्निल बहे फाग वृक्षों से !

रक्तिम आभा कभी झलकती
शीतल पावन अगन धधकती,
जल जाएँ इक-इक कर रोड़े
सुगम सुनहरी राह उभरती !

बरस-बरस नीले अम्बर से
मेघ तृषा बुझाते भू की,
बूंद-बूंद में लाते अमृत
बादल प्यास मिटाते जी की !

सहज प्रफ्फुलित रेशा-रेशा
खिली-खिली सी धरा सुहानी,
गहराई में तपन छुपी है
उसे सम्भाले शीतल पानी !

खाली मन का कोरा पन्ना
जिस रंग में चाहे रंग डालो,
केसरिया बन जले मशाल
एक क्रांति की लहर उठा दो !