आज एक पुरानी कविता
तुम्हारे कारण
यह जीवन यदि सुंदर स्वप्न सलोना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
इस मन का हर ख्वाब यूँ ही सच होना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
बरसों बीते सँग सँग चलते, नया नया सा लगता हर दिन
कैसे कटता सफर अकेले, रहते कैसे हम तुम बिन
भरा हुआ भावों से इस दिल का हर कोना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
सहज प्रेम तुमने बरसाया, पूरा का पूरा अपनाया
भुला दिया सारी भूलों को, प्रतिपल नव विश्वास दिलाया
नहीं कभी यह बंधन अब ढीला होना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
नयनों से कह दीं बातें, जब अधर कभी सकुचाए
दिल ने दिल का हाल सुना, जब श्रवण नहीं सुन पाए
इस उर को मुस्काना हर पल कभी नहीं रोना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
नहीं कुरेदा कमियों को, बस आदर्शों की ओर बढ़ाया
छूट गयी सारी अकुलाहट, सँग सँग हमने कदम उठाया
दो से एक बनें अब हर बार यही होना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
साथ तुम्हारा अनुपम तोहफा, कुदरत ने जो बख्शा
नहीं उऋन हो पायेगें, न होने की अभिलाषा
पाया जो भी शुभ हमने नहीं उसे खोना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
दीप दीप से जलता ऐसे, प्रेम से प्रेम उपजता
प्रेम तुम्हारा ही अंतर में, मेरा बन कर सजता
इसी प्रेम को हर क्षण तुम पर अब अर्पित होना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
आँखों की चमक, अधरों की हँसी, प्रेम का ही प्रतिबिम्बन
मनः ऊर्जा, कर्म की शक्ति, इसी प्रेम के कारण
हम दोनों के मध्य यही कोई और नहीं होना है, तो सिर्फ तुम्हारे कारण !
कितना मनभावन वर्णन!आप दोनों का नेह,विश्वास और सहभागिता यों ही बनी रहे ,तथा जीवन का मार्ग आनन्दमयबना रहे -यही हमारी कामना है !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रतिभा जी..
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत अहसास...हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार कैलाश जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार राजीव जी !
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