निंदा -स्तुति
तारीफें झूठी होती हैं अक्सर
उन पर हम आँख मूंदकर भरोसा करते हैं
फटकार सही हो सकती है
पर कान नहीं धरते हैं
प्रशंसकों को मित्र की पदवी दे डालते
सिखावन देने वालों को यदि शत्रु नहीं
तो कदापि निज हितैषी नहीं मानते
तारीफ़ें झूठा आश्वासन देती हैं
मंजिलों का
आलोचना आगे ले जा सकती थी
नकार उसे पाँव की जंजीर बना लेते
कहीं बढ़ते नहीं
उस इक माया जाल में
कोल्हू के बैल की तरह
गोल-गोल घूम तुष्ट होते
संसार चक्र में फंसे
उन्हीं विषयों से राग बटोरते
जो चुक जाता क्षण में
आगे क्या है ज्ञात नहीं
पर जो भी है निंदा-स्तुति के पार है
वह सुख-दुःख के भी परे है
वहां तो स्वयं ही जाना होता है
कोई खबर नहीं आती
उस अनाम अगम की !
सत्य वचन। ।।।
जवाब देंहटाएंनिंदा नियरे राखिए....
अच्छी प्रस्तुति। ।।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०४-०१-२०२१) को 'उम्मीद कायम है'(चर्चा अंक-३९३६ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार !
हटाएंतारीफ़ अक्सर झूठी ही होती हैं। सत्य लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने।
जवाब देंहटाएंउपयोगी और सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएं--
नूतन वर्ष 2021 की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जो भी है निंदा-स्तुति के पार है
जवाब देंहटाएंवह सुख-दुःख के भी परे है
वहां तो स्वयं ही जाना होता है
गहरे सत्य को समेटे अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
बहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंपुरुषोत्तम जी, सुशील जी, नीतीश जी, यशवंत जी, डा. शास्त्री, मीना जी व शांतनु जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार !
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