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रविवार, जनवरी 3

निंदा -स्तुति

निंदा -स्तुति

तारीफें झूठी होती हैं अक्सर 

उन पर हम आँख मूंदकर भरोसा करते हैं 

फटकार सही हो सकती है 

पर कान नहीं धरते हैं 

प्रशंसकों को मित्र की पदवी दे डालते 

सिखावन देने वालों को यदि शत्रु नहीं 

तो कदापि निज हितैषी नहीं मानते 

तारीफ़ें झूठा आश्वासन देती हैं 

मंजिलों का 

आलोचना आगे ले जा सकती थी  

नकार उसे पाँव की जंजीर बना लेते  

कहीं बढ़ते नहीं 

उस इक माया जाल में 

कोल्हू के बैल की तरह

 गोल-गोल घूम तुष्ट होते 

संसार चक्र में फंसे 

उन्हीं विषयों से राग बटोरते 

जो चुक जाता क्षण में 

आगे क्या है ज्ञात नहीं 

पर जो भी है निंदा-स्तुति के पार है 

वह सुख-दुःख के भी परे है 

वहां तो स्वयं ही जाना होता है 

कोई खबर नहीं आती 

उस अनाम अगम की ! 

 

सोमवार, फ़रवरी 20

शिवरात्रि के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनायें


शिवरात्रि पर

एक झलक जो तेरी पाए
तेरा दीवाना हो जाये,
गा-गा कर फिर महिमा तेरी
मस्त हुआ सा दिल बहलाए !

तू कैसी सरगोशी करता
जो जैसा, तुझे वैसा देखे,
पल–पल चमत्कार दिखलाता
बुद्धि खा जाती है धोखे !

कौन जान सकता है तुझको
अगम, अगोचर, अकथ, अनंत,
एक प्रखर आलोक अनोखा
जिसका कभी न होता अंत !

नभ के सूरज उगते मिटते
भीतर तेरा सूर्य अजर है,
तू अकम्प सदा है प्रज्वलित
परम उजाला वही अमर है !

तू करुणा का सिंधु अपरिमित
नहीं पुकार अनसुनी करता,
जो तुझको आधार बनाता
अंतर वह निज प्रेम से भरता !