तानाशाही
निरंकुश सरकारों का
दमन चक्र
जब चलता है
न जाने कितने देशों में
मानवाधिकारों का हनन करता है
पार कर जाते हैं
जब तानाशाह
क्रूरता की हदें
पिसती है बेक़सूर जनता
जो विरोध तक नहीं जता पाती
और चंद लोग
जो आवाज़ उठाते हैं
कुचल दी जाती है उनकी ताक़त
डरा-धमका कर
या कभी जान भी लेकर
ऐसी सरकारें स्वतंत्र होकर भी
स्वतंत्र नहीं होतीं
वे भी किन्हीं के इशारों पर चलती हैं
उनके मालिक होते हैं
अहं और लोभ
हिंसा और दमन उनके अस्त्र
तब यूएनओ भी
साक्षी बना रहता है
क्योंकि वहाँ बैठे ज़्यादा लोग आते हैं
ऐसे मुल्क से
जो मानता है स्वयं को दुनिया का पैरोकार
सत्ता कोई भी सँभाले
आ जाता है उसे
दुनिया को चलाने का अधिकार !
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 17 सितंबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
हटाएंडरा-धमका कर
जवाब देंहटाएंया कभी जान भी लेकर
ऐसी सरकारें स्वतंत्र होकर भी
स्वतंत्र नहीं होतीं
बहुत गूढ़ भाव.... बधाई हो
स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबलवान दयावान हो, ऐसा अक्सर होता नहीं.
जवाब देंहटाएंसफलता बिरलों के सर चढ़ कर बोली नहीं .
प्रज्ञावान पर दुनिया टिकी है. पर बलवान की ही हमेशा चली है.
स्वागत व आभार नूपुर जी !
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